िशवरीनारायण का मेला
प्रो. अिश्वनी केशरवानी
महानदी के तट पर स्थित प्राचीन, प्राकृतिक छटा से सुसज्जित और छत्तीसगढ़ की संस्कारधानी के नाम से विख्यात् शिवरीनारायण, जांजगीर-चांपा जिलान्तर्गत जांजगीर से 60 कि. मी., बिलासपुर से 64 कि. मी., कोरबा से 110 कि. मी., रायगढ़ से व्हाया सारंगढ़ 110 कि. मी. और राजधानी रायपुर से व्हाया बलौदाबाजार 120 कि. मी. की दूरी पर स्थित है। यह नगर कलचुरि कालीन मूर्तिकला से सुसज्जित है। यहां महानदी, शिवनाथ और जोंक नदी का त्रिधारा संगम प्राकृतिक सौंदर्य का अनूठा नमूना है। इसीलिए इसे ``प्रयाग`` जैसी मान्यता है। मैकल पर्वत श्रृंखला की तलहटी में अपने अप्रतिम सौंदर्य के कारण और चतुभुZजी विष्णु मूर्तियों की अधिकता के कारण स्कंद पुराण में इसे ``श्री नारायण क्षेत्र`` और ``श्री पुरूषोत्तम क्षेत्र`` कहा गया है। प्रतिवर्ष माघ पूणिZमा से यहां एक बृहद मेला का आयोजन होता है, जो महाशिवरात्री तक लगता है। इस मेले में हजारों-लाखों दर्शनार्थी भगवान नारायण के दर्शन करने जमीन में ``लोट मारते`` आते हैं। ऐसी मान्यता है कि माघ पूणिZमा को भगवान जगन्नाथ यहां विराजते हैं और पुरी के भगवान जगन्नाथ के मंदिर का कपाट बंद रहता है। इस दिन उनका दर्शन मोक्षदायी होता है। तत्कालीन साहित्य में जिस नीलमाधव को पुरी ले जाकर भगवान जगन्नाथ के रूप में स्थापित किया गया है, उसे इसी शबरीनारायण-सिंदूरगिरि क्षेत्र से पुरी ले जाने का उल्लेख 14 वीं शताब्दी के उिड़या कवि सरलादास ने किया है। इसी कारण शिवरीनारायण को छत्तीसगढ़ का जगन्नाथ पुरी कहा जाता है और शिवरीनारायण दर्शन के बाद राजिम का दर्शन करना आवश्यक माना गया है क्योंकि राजिम में ´´साक्षी गोपाल`` विराजमान हैं। छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा मेला होने के कारण यहां के मेले को ``छत्तीसगढ़ का कुंभ`` कहा जाता है।
छत्तीसगढ़ में िशवरीनारायण के मेला का विशेष महत्व है। क्यों कि यहां का मेला अन्य मेला की तरह बेतरतीब नहीं बल्कि पूरी तरह से व्यवस्थित होता है। दुकान की अलग अलग लाईनें होती हैं। एक लाईन फल दुकान की, दूसरी लाइन बर्तन दुकानों की, तीसरी लाइन मनिहारी दुकानों की, चौथी लाइन रजाई-गद्दों की, पांचवीं लाइन सोने-चांदी के जेवरों की होती है। इसी प्रकार एक लाईन होटलों की, एक लाइन सिनेमा-सर्कस की, एक लाइन कृषि उपकरणों, जूता-चप्पलों की दुकानें आदि होती है। इस मेले में दुकानदार अच्छी खासी कमाई कर लेता है।
नगर के पिश्चम में महंतपारा की अमराई में और उससे लगे मैदान में माघ पूणिZमा से महािशवरात्री तक प्रतिवषZ मेला लगता है। माघ पूणिZमा की पूर्व रात्रि में यहां भजन-कीर्तन, रामलीला, गम्मत, और नाच-गाना करके दशZनार्थियों का मनोरंजन किया जाता है और प्रात: तीन-चार बजे चित्रोत्पलागंगा-महानदी में स्नान करके भगवान शबरीनारायण के दशZन के लिए लाइन लगायी जाती है। दशZनार्थियों की लाइन मंदिर से साव घाट तक लगता था। भगवान शबरीनारायण की आरती के बाद मंदिर का द्वार दशZनार्थियों के लिए खोल दिया जाता है। इस दिन भगवान शबरीनारायण का दशZन मोक्षदायी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ इस दिन पुरी से आकर यहां सशरीर विराजते हैं। कदाचित् इसी कारण दूर दूर से लोग यहां चित्रोत्पलागंगा-महानदी में स्नान कर भगवान शबरीनारायण का दशZन करने आते है। बड़ी मात्रा में लोग जमीन में ``लोट मारते`` यहां आते हैं। मंदिर के आसपास और माखन साव घाट तक ब्राह्मणों द्वारा श्री सत्यनारायण जी की कथा-पूजा कराया जाता था। रमरमिहा लोगों के द्वारा विशेष राम नाम कीर्तन होता था। िशवरीनारायण में मेला लगने की शुरूवात कब हुई इसकी लिखित में जानकारी नहीं है लेकिन प्राचीन काल से माघी पूणिZमा को भगवान शबरीनारायण के दशZन करने हजारों लोग यहां आते थेण्ण्ण्और जहां हजारों लोगों की भीढ़ हो वहां चार दुकानें अवश्य लग जाती है, कुछ मनोरंजन के साधन-सिनेमा, सर्कस, झूला, मौत का कुंआ, पुतरी घर आदि आ जाते हैं। यहां भी ऐसा ही हुआ होगा। लेकिन इसे मेला के रूप में व्यवस्थित रूप महंत गौतमदास जी की प्रेरणा से हुई। मेला को वर्तमान व्यवस्थित रूप प्रदान करने में महंत लालदास जी का बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने मठ के मुिख्तयार पंडित कौशलप्रसाद तिवारी की मद्द से अमराई में सीमेंट की दुकानें बनवायी और मेला को व्यवस्थित रूप प्रदान कराया। पंडित रामचंद्र भोगहा ने भी भोगहापारा में सीमेंट की दुकानें बनवायी और मेला को महंतपारा की अमराई से भोगहापारा तक विस्तार कराया। चूंकि यहां का प्रमुख बाजार भोगहापारा में लगता था अत: भोगहा जी को बाजार के कर वसूली का अधिकार अंग्रेज सरकार द्वारा प्रदान किया गया था। आजादी के बाद मेला की व्यवस्था और कर वसूली का दायित्व जनपद पंचायत जांजगीर को सौंपा गया था। जबसे िशवरीनारायण नगर पंचायत बना है तब से मेले की व्यवस्था और कर वसूली नगर पंचायत करती है। नगर की सेवा समितियों और मठ की ओर से दशZनार्थियों के रहने, खाने-पीने आदि की नि:शुल्क व्यवस्था की जाती है।
आजादी के पूर्व अंग्रेज सरकार द्वारा गजेटियर प्रकािशत कराया गया जिसमें मध्यप्रदेश के जिलों की सम्पूर्ण जानकारी होती थी। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ फ्यूडेटरी इस्टेट प्रकािशत कराया गया जिसमें छत्तीसगढ़ के रियासतों, जमींदारी और दशZनीय स्थलों की जानकारी थी। आजादी के पश्चात सन 1961 की जनगरणा हुई और मध्यप्रदेश के मेला और मड़ई की जानकारी एकत्रित करके इम्पीरियल गजेटियर के रूप में प्रकािशत किया गया था। इसमें छत्तीसगढ़ के छ: जिलों क्रमश: रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, रायगढ़, सरगुजा, बस्तर के मेला, मड़ई, पर्व और त्योहारों की जानकारी प्रकािशत की गयी है। इसके अनुसार छत्तीसगढ़ में िशवरीनारायण, राजिम और पीथमपुर का मेला 100 वषZ से अधिक वषोZ से लगने तथा यहां के मेला में एक लाख दशZनार्थियों के शामिल होने का उल्लेख है।
यहां के मेला में वैवाहिक खरीददारी अधिक होती थी। बर्तन, रजाई-गद्दा, पेटी, सिल-लोढ़ा, झारा, डुवा, कपड़ा आदि की अच्छी खरीददारी की जाती थी। मेला में अकलतरा और िशवरीनारायण के साव स्टोर का मनिहारी दुकान, दुर्ग, धमधा, बलौदाबाजार, चांपा, बहम्नीडीह और रायपुर का बर्तन दुकान, बिलासपुर का रजाई-गद्दे की दुकान, कलकत्ता का पेटी दुकान, चुड़ी-टिकली की दुकानें, सोने-चांदी के जेवरों की दुकानें, नैला के रमाशंकर गुप्ता का होटल और उसके बगल में गुपचुप दुकान, अकलतरा और सक्ती का सिनेमा घर, किसिम किसिम के झूला, मौत का कुंआ, नाटक मंडली, जादू, तथा उड़ीसा का मिट्टी की मूर्तियों की प्रदिशZनी-पुतरी घर बहुत प्रसिद्ध था। यहां उिड़या संस्कृति को पोषित करने वाला सुस्वादिष्ट उखरा बहुतायत में आज भी बिकने आता है।
िशवरीनारायण और आस पास के गांवों में मेला के अवसर पर मेहमानों की अपार भीढ़ होती है। इस अवसर पर विशेष रूप से बहू-बेटियों को लिवा लाने की प्रथा है। शाम होते ही घर की महिलाएं झुंड के झुंड खरीददारी के निकल पड़ती हैं। खरीददारी के साथ साथ वे होटलों और चाट दुकानों में अवश्य जाती हैं और सिनेमा देखना नहीं भूलतीं। मेला में वैवाहिक खरीददारी अवश्य होती है। शासन दशZनार्थियों की सुविधा के लिए पुलिस थाना, विभिन्न शासकीय प्रदिशZनी, पीने के पानी की व्यवस्था आदि करती है। लोग चित्रोत्पलागंगा में स्नान कर, भगवान शबरीनारायण का दशZन करने, श्री सत्यनारायण की कथा-पूजा करवाने और मंदिर में ध्वजा चढ़ाने से लेकर विभिन्न मनोरंजन का लुत्फ उठाने और खरीददारी कर प्रफुिल्लत मन से घर वापस लौटते हैं। यानी एक पंथ दो काज ... तीर्थ यात्रा के साथ साथ मनोरंजन और खरीददारी। लोग मेले की तैयारी एक माह पूर्व से करते हैं। यहां के मेला के बारे में पंडित शुकलाल पांडेय `छत्तीसगढ़ गौरव` में लिखते हैं :-
पावन मेले यथा चंद्र किरण्ों, सज्जन उर।अति पवित्र त्यों क्षेत्र यहां राजिम, शौरिपुर।शोभित हैं प्रत्यक्ष यहां भगवन्नारायण।दशZन कर कामना पूर्ण करते दशZकगण।मरे यहां पातकी मनुज भी हो जाते धुव मुक्त कहते, युग क्षेत्र ये अतिशय महिमायुक्त हैं।।
प्रस्तुति,
प्रो. अिश्वनी केशरवानीराघव,
प्रो. अिश्वनी केशरवानी
महानदी के तट पर स्थित प्राचीन, प्राकृतिक छटा से सुसज्जित और छत्तीसगढ़ की संस्कारधानी के नाम से विख्यात् शिवरीनारायण, जांजगीर-चांपा जिलान्तर्गत जांजगीर से 60 कि. मी., बिलासपुर से 64 कि. मी., कोरबा से 110 कि. मी., रायगढ़ से व्हाया सारंगढ़ 110 कि. मी. और राजधानी रायपुर से व्हाया बलौदाबाजार 120 कि. मी. की दूरी पर स्थित है। यह नगर कलचुरि कालीन मूर्तिकला से सुसज्जित है। यहां महानदी, शिवनाथ और जोंक नदी का त्रिधारा संगम प्राकृतिक सौंदर्य का अनूठा नमूना है। इसीलिए इसे ``प्रयाग`` जैसी मान्यता है। मैकल पर्वत श्रृंखला की तलहटी में अपने अप्रतिम सौंदर्य के कारण और चतुभुZजी विष्णु मूर्तियों की अधिकता के कारण स्कंद पुराण में इसे ``श्री नारायण क्षेत्र`` और ``श्री पुरूषोत्तम क्षेत्र`` कहा गया है। प्रतिवर्ष माघ पूणिZमा से यहां एक बृहद मेला का आयोजन होता है, जो महाशिवरात्री तक लगता है। इस मेले में हजारों-लाखों दर्शनार्थी भगवान नारायण के दर्शन करने जमीन में ``लोट मारते`` आते हैं। ऐसी मान्यता है कि माघ पूणिZमा को भगवान जगन्नाथ यहां विराजते हैं और पुरी के भगवान जगन्नाथ के मंदिर का कपाट बंद रहता है। इस दिन उनका दर्शन मोक्षदायी होता है। तत्कालीन साहित्य में जिस नीलमाधव को पुरी ले जाकर भगवान जगन्नाथ के रूप में स्थापित किया गया है, उसे इसी शबरीनारायण-सिंदूरगिरि क्षेत्र से पुरी ले जाने का उल्लेख 14 वीं शताब्दी के उिड़या कवि सरलादास ने किया है। इसी कारण शिवरीनारायण को छत्तीसगढ़ का जगन्नाथ पुरी कहा जाता है और शिवरीनारायण दर्शन के बाद राजिम का दर्शन करना आवश्यक माना गया है क्योंकि राजिम में ´´साक्षी गोपाल`` विराजमान हैं। छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा मेला होने के कारण यहां के मेले को ``छत्तीसगढ़ का कुंभ`` कहा जाता है।
छत्तीसगढ़ में िशवरीनारायण के मेला का विशेष महत्व है। क्यों कि यहां का मेला अन्य मेला की तरह बेतरतीब नहीं बल्कि पूरी तरह से व्यवस्थित होता है। दुकान की अलग अलग लाईनें होती हैं। एक लाईन फल दुकान की, दूसरी लाइन बर्तन दुकानों की, तीसरी लाइन मनिहारी दुकानों की, चौथी लाइन रजाई-गद्दों की, पांचवीं लाइन सोने-चांदी के जेवरों की होती है। इसी प्रकार एक लाईन होटलों की, एक लाइन सिनेमा-सर्कस की, एक लाइन कृषि उपकरणों, जूता-चप्पलों की दुकानें आदि होती है। इस मेले में दुकानदार अच्छी खासी कमाई कर लेता है।
नगर के पिश्चम में महंतपारा की अमराई में और उससे लगे मैदान में माघ पूणिZमा से महािशवरात्री तक प्रतिवषZ मेला लगता है। माघ पूणिZमा की पूर्व रात्रि में यहां भजन-कीर्तन, रामलीला, गम्मत, और नाच-गाना करके दशZनार्थियों का मनोरंजन किया जाता है और प्रात: तीन-चार बजे चित्रोत्पलागंगा-महानदी में स्नान करके भगवान शबरीनारायण के दशZन के लिए लाइन लगायी जाती है। दशZनार्थियों की लाइन मंदिर से साव घाट तक लगता था। भगवान शबरीनारायण की आरती के बाद मंदिर का द्वार दशZनार्थियों के लिए खोल दिया जाता है। इस दिन भगवान शबरीनारायण का दशZन मोक्षदायी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ इस दिन पुरी से आकर यहां सशरीर विराजते हैं। कदाचित् इसी कारण दूर दूर से लोग यहां चित्रोत्पलागंगा-महानदी में स्नान कर भगवान शबरीनारायण का दशZन करने आते है। बड़ी मात्रा में लोग जमीन में ``लोट मारते`` यहां आते हैं। मंदिर के आसपास और माखन साव घाट तक ब्राह्मणों द्वारा श्री सत्यनारायण जी की कथा-पूजा कराया जाता था। रमरमिहा लोगों के द्वारा विशेष राम नाम कीर्तन होता था। िशवरीनारायण में मेला लगने की शुरूवात कब हुई इसकी लिखित में जानकारी नहीं है लेकिन प्राचीन काल से माघी पूणिZमा को भगवान शबरीनारायण के दशZन करने हजारों लोग यहां आते थेण्ण्ण्और जहां हजारों लोगों की भीढ़ हो वहां चार दुकानें अवश्य लग जाती है, कुछ मनोरंजन के साधन-सिनेमा, सर्कस, झूला, मौत का कुंआ, पुतरी घर आदि आ जाते हैं। यहां भी ऐसा ही हुआ होगा। लेकिन इसे मेला के रूप में व्यवस्थित रूप महंत गौतमदास जी की प्रेरणा से हुई। मेला को वर्तमान व्यवस्थित रूप प्रदान करने में महंत लालदास जी का बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने मठ के मुिख्तयार पंडित कौशलप्रसाद तिवारी की मद्द से अमराई में सीमेंट की दुकानें बनवायी और मेला को व्यवस्थित रूप प्रदान कराया। पंडित रामचंद्र भोगहा ने भी भोगहापारा में सीमेंट की दुकानें बनवायी और मेला को महंतपारा की अमराई से भोगहापारा तक विस्तार कराया। चूंकि यहां का प्रमुख बाजार भोगहापारा में लगता था अत: भोगहा जी को बाजार के कर वसूली का अधिकार अंग्रेज सरकार द्वारा प्रदान किया गया था। आजादी के बाद मेला की व्यवस्था और कर वसूली का दायित्व जनपद पंचायत जांजगीर को सौंपा गया था। जबसे िशवरीनारायण नगर पंचायत बना है तब से मेले की व्यवस्था और कर वसूली नगर पंचायत करती है। नगर की सेवा समितियों और मठ की ओर से दशZनार्थियों के रहने, खाने-पीने आदि की नि:शुल्क व्यवस्था की जाती है।
आजादी के पूर्व अंग्रेज सरकार द्वारा गजेटियर प्रकािशत कराया गया जिसमें मध्यप्रदेश के जिलों की सम्पूर्ण जानकारी होती थी। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ फ्यूडेटरी इस्टेट प्रकािशत कराया गया जिसमें छत्तीसगढ़ के रियासतों, जमींदारी और दशZनीय स्थलों की जानकारी थी। आजादी के पश्चात सन 1961 की जनगरणा हुई और मध्यप्रदेश के मेला और मड़ई की जानकारी एकत्रित करके इम्पीरियल गजेटियर के रूप में प्रकािशत किया गया था। इसमें छत्तीसगढ़ के छ: जिलों क्रमश: रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, रायगढ़, सरगुजा, बस्तर के मेला, मड़ई, पर्व और त्योहारों की जानकारी प्रकािशत की गयी है। इसके अनुसार छत्तीसगढ़ में िशवरीनारायण, राजिम और पीथमपुर का मेला 100 वषZ से अधिक वषोZ से लगने तथा यहां के मेला में एक लाख दशZनार्थियों के शामिल होने का उल्लेख है।
यहां के मेला में वैवाहिक खरीददारी अधिक होती थी। बर्तन, रजाई-गद्दा, पेटी, सिल-लोढ़ा, झारा, डुवा, कपड़ा आदि की अच्छी खरीददारी की जाती थी। मेला में अकलतरा और िशवरीनारायण के साव स्टोर का मनिहारी दुकान, दुर्ग, धमधा, बलौदाबाजार, चांपा, बहम्नीडीह और रायपुर का बर्तन दुकान, बिलासपुर का रजाई-गद्दे की दुकान, कलकत्ता का पेटी दुकान, चुड़ी-टिकली की दुकानें, सोने-चांदी के जेवरों की दुकानें, नैला के रमाशंकर गुप्ता का होटल और उसके बगल में गुपचुप दुकान, अकलतरा और सक्ती का सिनेमा घर, किसिम किसिम के झूला, मौत का कुंआ, नाटक मंडली, जादू, तथा उड़ीसा का मिट्टी की मूर्तियों की प्रदिशZनी-पुतरी घर बहुत प्रसिद्ध था। यहां उिड़या संस्कृति को पोषित करने वाला सुस्वादिष्ट उखरा बहुतायत में आज भी बिकने आता है।
िशवरीनारायण और आस पास के गांवों में मेला के अवसर पर मेहमानों की अपार भीढ़ होती है। इस अवसर पर विशेष रूप से बहू-बेटियों को लिवा लाने की प्रथा है। शाम होते ही घर की महिलाएं झुंड के झुंड खरीददारी के निकल पड़ती हैं। खरीददारी के साथ साथ वे होटलों और चाट दुकानों में अवश्य जाती हैं और सिनेमा देखना नहीं भूलतीं। मेला में वैवाहिक खरीददारी अवश्य होती है। शासन दशZनार्थियों की सुविधा के लिए पुलिस थाना, विभिन्न शासकीय प्रदिशZनी, पीने के पानी की व्यवस्था आदि करती है। लोग चित्रोत्पलागंगा में स्नान कर, भगवान शबरीनारायण का दशZन करने, श्री सत्यनारायण की कथा-पूजा करवाने और मंदिर में ध्वजा चढ़ाने से लेकर विभिन्न मनोरंजन का लुत्फ उठाने और खरीददारी कर प्रफुिल्लत मन से घर वापस लौटते हैं। यानी एक पंथ दो काज ... तीर्थ यात्रा के साथ साथ मनोरंजन और खरीददारी। लोग मेले की तैयारी एक माह पूर्व से करते हैं। यहां के मेला के बारे में पंडित शुकलाल पांडेय `छत्तीसगढ़ गौरव` में लिखते हैं :-
पावन मेले यथा चंद्र किरण्ों, सज्जन उर।अति पवित्र त्यों क्षेत्र यहां राजिम, शौरिपुर।शोभित हैं प्रत्यक्ष यहां भगवन्नारायण।दशZन कर कामना पूर्ण करते दशZकगण।मरे यहां पातकी मनुज भी हो जाते धुव मुक्त कहते, युग क्षेत्र ये अतिशय महिमायुक्त हैं।।
प्रस्तुति,
प्रो. अिश्वनी केशरवानीराघव,
डागा कालोनी,चांपा-495671 (छ.ग.)
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