अपंगता जीवन में बाधक नहीं होता : इंद्राणी केशरवानी
मुंगेली के प्रतििष्ठत मालगुजार भवानी साव दानी के परिवार का वहां दबदबा आज भी बरकरार है। जब वे मालगुजार थे तब की बातें हम क्या जाने, लेकिन आज हमें जो किंवदंति के रूप में सुनने को मिलती है उसे ही जानते हैं। भवानी के तीन पुत्र क्रमश: रामलाल साव, िशवदयाल साव और अिम्बका साव हुए। रामलाल साव का कोई बच्चा नहीं था इसलिए वे अपनी सम्पत्ति को `रामलाल-भवानी साव धर्मादा ट्रस्ट` बनाकर सामाजिक सेवा में समर्पित कर दिया। लेकिन िशवदयाल साव के तीन पुत्र क्रमश: ओंकारप्रसाद, श्रीराम और अनुजराम हुए जबकि अिम्बका साव के दो पुत्र निरंजन प्रसाद और निर्मल प्रसाद हुए। सभी राजसी ठाठ से जीवन व्यतीत कर रहे थे। सबके अपने शौक थे। कोई संगीत और नृत्य को अपने जीवन का अंग बनाया तो कोई राजा-महाराजा के साथ दोस्ती करके गौरवािन्वत होता रहा, तो कोई मालगुजारी का काम देखने में मगन था। 1947 में देश आजाद हुआ और 1952 में देश और प्रदेश में प्रथम आम चुनाव हुए। राजा, जमींदार और मालगुजारों ने रामराज्य परिषद बनाकर चुनाव लड़े और उन्हें सफलता भी मिली। श्री अिम्बका साव भी रामराज्य परिषद से चुनाव लड़कर विधायक बने। तब छत्तीसगढ़ मध्य भारत के अंतर्गत आता था और नागपुर उसकी राजधानी थी। अिम्बका साव का राजधानी नागपुर अक्सर जाना होता था। संयोग से वहां उनकी सुपुत्री निराशा का परिवार था। उन्होंने अपने दोनों पुत्रों निरंजन और निर्मल को वहां पढ़ने के लिए भेजा। इस प्रकार उनका आधा परिवार नागपुर में रहने लगा। निरंजन प्रसाद तो वहां के मारिश कालेज से लॉ की डिग्री प्राप्त किया। अध्ययन के दौरान एक एक्सीडेंट में उनका एक पैर काटना पड़ा। लेकिन उनका आत्म विश्वास उन्हें राजनीति के िशखर तक ले गया। वे दो बार विधायक, एक बार सांसद, नगरपालिका अध्यक्ष, जिला सहकारी बैंक के संचालक और पार्टी के जिलाध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों में रहे। वे छत्तीसगढ़ में `अलख निरंजन` के रूप में जन सेवा को अंजाम दिये। राजनीति की िशक्षा उन्हें अपने पिता के चुनाव संचालन से मिली थी। लेकिन निर्मलप्रसाद की सैद्धांतिक पढ़ाई में कम रूचि थी और वे तकनीकी बारीकियों को बड़ी गंभीरता से समझने का प्रयास करते थे। पिता और भाई की राजनीति में रहने से चौपट हो रहे अपने पैत्रिक व्यवसाय को सम्हालने के लिए पढ़ाई को अधूरा छोड़कर मुंगेली लौट आये। यहां उन्होंने एक मोटर गेरेज खोला लेकिन ज्यादा दिन इसमें उनका मन नहीं लगा और इलेिक्ट्रशयन का काम सम्हालने लगे। इसमें भी उनका मन नहीं लगा और वे मजगांव की खेती देखने लगे। उनका विवाह भी जल्द कर दिया गया। शहर की भागम भाग से दूर वे गांव की प्राकृतिक सौंदर्य में जैसे रम से गये थे। एक एक करके विमल, कला, प्रदीप, कल्याणी, इंद्राणी और राजेश का आगमन सहज ही हुआ। इंद्राणी जब छ: माह की थी तब इस क्षेत्र में हैजा का प्रकोप हुआ। मजगांव भी उसके प्रकोप से नहीं बच सका। सम्हलते सम्हलते भी इंद्राणी को उल्टी-दस्त होने लगा। छोटी सी बच्ची और उपर से उल्टी-दस्त, गांव में इलाज तो संभव नहीं था, बाबु जी की दवा भी असर नहीं किया। मां तो एकदम परेशान हो गयी। उस समय 10-12 कि. मी. दूर मुगेली तक आने जाने का कोई साधन जल्दी नहीं मिलता था। एक बैल गाड़ी में मां इंद्राणी को लेकर मुुंगेली आ गयी। तत्काल डॉक्टर को दिखाया गया। परीक्षण के बाद डॉक्टर ने इंजेक्शन लगा दिया और खाने को दवाई भी दे दिया। हप्ते दिन बाद इंद्राणी ठीक हो गयी। जब वह चलने योग्य हुई तब उसे चलने में कठिनाई होने लगी। उम्र बढ़ने के साथ जब वह नहीं चल सकी तो उसकी पुन: डॉक्टरी परीक्षण हुआ। दिल्ली, बंबई और नागपुर सभी जगह परीक्षण के बाद पता चला कि बचपन में उल्टी दस्त रोकने के लिए जो इंजेक्शन लगाई गई थी वह एक्सपाइरी डेट की थी जिसके कारण उन्हें पोलियो हो गया। लड़की और उपर से चलने के अयोग्यण्ण्ण् मालगुजार परिवार को बड़ा अघात लगा। पर्याप्त इलाज कराया गया, उसके पैर का कई बार आपरेशन किया गया लेकिन सब बेकार। उम्र बढ़ने लगा और परेशानियां बढ़ने लगी। डॉक्टरों का आश्वासन अब मन को ज्यादा दिन धीरज नहीं दे सका और इसे ईश्वर की मजीZ समझकर सभी आत्मसात करने लगे। उनसे सभी स्नेह करने लगे, उन्हें कभी किसी बात की कमी न हो, इसका सभी ख्याल रखते थे। एक वाकिये का जिक्र करते हुए इंद्राणी बताने लगी कि एक बार दूसरे बच्चों को अच्छी सेंडिल पहनते देखकर उन्हें भी लगने लगा कि वह भी ऐसे ही सेंडिल पहनेगी। फिर एक बार दूसरे की साइकिल में चलाने के लिए बैठने पर गिर गयी और रोने लगी तब उनके बाबु जी उनके लिए तत्काल एक नई साइकिल खरीदी। बचपन से ही उनके मन में सभी काम करने की ललक थी, इसके लिए उनमें आत्म विश्वास की कमी नहीं थी। धीरे धीरे इंद्राणी स्कूल जाने लगी। पढ़ने में वह होिशयार थी, क्लास में हमेशा अव्वल आती थी। जब वह स्कूल की पढ़ाई पूरी कर ली और कालेज की पढ़ाई के लिए बिलासपुर में दाखिला ली तो शुरू शुरू में उन्हेंं घर की बहुत याद आती थी। कमरे में बैठकर खूब रोती थी। धीरे धीरे सब ठीक हो गया और वह ग्रेजुएट हो गयी। फिर अपने कल्याणी दीदी के पास रायगढ़ एम.एस-सी. करने आ गयी। यहां से एम.एस-सी करके रविशंकर विश्व विद्यालय रायपुर से एम. फिल की परीक्षा उत्तीर्ण की। इस प्रकार जीवन के अनमोल क्षण उन्होंने पढ़ाई करते गुजार दी। अपने भाई के साथ रहते हुए उन्होंने समाजशास्त्र में एम. ए. की। अ. जा. हायर सेकंडरी स्कूल नारायणपुर, जशपुर में उनकी व्याख्याता के पद पर नियुक्ति हो गयी। वह अकेली जाने को तैयारी थी लेकिन परिवार के लोग दूर वनांचल में उन्हें अकेली नौकरी करने के लिए भेजने के पक्ष में नहीं थे। बाद में उनका स्थानान्तरण कोरबा के पास कराने के लिए प्रयास किया गया फलस्वरूप उनका स्थानान्तरण रामपुर हो गया। लेकिन यहां भी वही समस्या थी। कुल मिलाकर उन्हें इस नौकरी से वंचित होना पड़ा। उन्हें थोड़ी निराशा अवश्य हुई मगर उन्होंने हार नहीं मानी। फिर वह क्षण भी आया जब उन्हें शासकीय कन्या हायर सेकंडरी स्कूल मुंगेली में उच्च श्रेणी िशक्षिका के रूप में पदस्थापना मिली। वह तत्काल वहां कार्यभार ग्रहण की और विवाहोपरांत कोरबा आ गयी। ईश्वर की लीला देखिये कि उनकी शादी में भी भरी बरसात रूकावट बनी और बारात दूसरे दिन पहुंची। बहरहाल, विवाहोपरांत उनका दाम्पत्य जीवन कोरबा में अच्छे से चलने लगा। उन्होंने कम्प्यूटर की ट्रेनिंग ली। इस प्रकार अच्छी से अच्छी िशक्षा प्राप्त कर उन्होंने अपना दाम्पत्य जीवन की शुरूवात की। अपने जीजा के संपर्क में रहकर उन्होंने लेखन की शुरूवात की। उनके सामाजिक, पारिवारिक लेख आये दिन पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगे। एक नन्ही सी गुिड़या के आगमन से उसकी जिंदगी जैसे बदल सी गयी। उनका नाम समृिद्ध रखा गया। नाम के अनुरूप समृिद्ध के आगमन से उनके छोटे से परिवार में सुख और समृिद्ध आ गयी। फिर वह सामाजिक संस्थाओं से जुड़ने लगी और सर्वप्रथम उन्हें छत्तीसगढ़ केशरवानी वैश्य सभा में महिला प्रतिनिधि के रूप में प्रदेश उपाध्यक्ष मनोनित किया गया। उन्होंने कोरबा नगर केशरवानी वैश्य सभा और महिला सभा के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निबाही और तब से वह नगर केशरवानी वैश्य महिला सभा की अध्यक्ष हैं। वह प्रदेश केशरवानी वैश्य महिला सभा की महामंत्री की जिम्मेदारी सम्हालने के बाद वर्तमान में समाज की राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष हैं। यही नहीं बल्कि वह नारी संचेतना समिति कोरबा की सचिव पद पर कार्य करते हुए आज पुलिस विभाग के साथ मिलकर बालिकाओं को आत्म सुरक्षा के लिए माशZल आट्Zस का प्रिशक्षण का आयोजन करवाकर प्रशंसा का पात्र बन चुकी हैं। इसी प्रकार स्वास्थ्य िशविर और छात्र-अभिभावकों में मोबाइल तथा गािड़यों के दुरूपयोग आदि पर जन जागृति अभियान चलाकर लोगों से प्रशस्ति प्राप्त कर चुकी है। आज वह लायंस क्लब कोरबा एवरेस्ट की सचिव रहकर सेवाकार्य कर रही हैं। उनका मानना है कि शारीरिक अपंगता जीवन की सफलता में कभी बाधक नहीं होता बशतेZ मन में विश्वास और कार्य करने की लगन हो। जीवन के इस पड़ाव में मुझे मेरे माता-पिता, भाई-भाभी और दीदी-जीजा के साथ मेरे पति का साथ मिला। मैं सोचती हूं कि जीवन तो ईश्वर की देन है, माता-पिता जननी हैं लेकिन उसे सफलता पूर्वक जीने के लिए आत्म विश्वास, ध्ौर्य और लगन बहुत जरूरी है। यही कारण है कि आज मैं पैदल भी चलती हूं, हल्की गाड़ी (स्कूटी) भी चलाती हूं और ईश्वर ने साथ दिया तो कार भी चलाऊंगी। उनकी इस कामना के लिए हमारी हािर्दक शुभकामनाएं, ईश्वर उनकी कामना पूरी करे।
जीवन परिचय :-
नाम : श्रीमती इन्द्राणी केशरवानी
1. माता-पिता : श्रीमती शुकवारा-निर्मल केशरवानी
2. पति : अश्वनी कुमार केशरवानी
3. िशक्षा : एम. एस-सी. (प्राणीशास्त्र), एम. फिल. एम. ए. (समाजशास्त्र), बी. एड.
4. जन्म : 02. 10. 1965 (दो अक्टूबर उन्नीस सौ पैंसठ), मुंगेली के प्रतििष्ठत मालगुजार स्वण् अिम्बका साव की पौत्री एवं स्वण् निरंजन केशरवानी की भतीजी)
5. पद : 0 प्रभारी प्राचार्य, शासकीय आदिमजाति हाई स्कूल गोपालपुर, कोरबा (छत्तीसगढ़) 0 सचिव, नारी संचेतना समिति कोरबा 0 सचिव, लायंस क्लब कोरबा एवरेस्ट 0 राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष, अखिल भारतीय केशरवानी वैश्य महिला महासभा 0 अध्यक्ष, केशरवानी वैश्य महिला सभा कोरबा
6. पूर्व धारित पद : 0 उपाध्यक्ष, लायंस क्लब कोरबा एवरेस्ट 0 उपाध्यक्ष, छत्तीसगढ़ प्रदेश केशरवानी वैश्य सभा 0 महामंत्री, छत्तीसगढ़ प्रदेश केशरवानी वैश्य महिला सभा
7. अभिरूचि : पत्र-पत्रिकाओं में समाजिक एवं पारिवारिक लेख, कहानी एवं कविता प्रकािशत।
8. आयोजन : 0 युवतियों में आत्म रक्षा के लिए ``पुलिस-छात्र संचेतना कार्यक्रम`` के अंतर्गत का लड़कियों को मार्सल आट्Zस का प्रिशक्षण का आयोजन। 0 छात्र-छात्राओं के द्वारा मोबाइल एवं गाड़ी का दुरूपयोग न करने के लिए जागृति कार्यक्रम।
9. पुरस्कार/सम्मान विभिन्न सामाजिक एवं स्वैच्छिक संस्थाओं से सम्मानित और पुरस्कृत।
10. संदेश : शारीरिक अपंगता जीवन में किसी प्रकार बाधक नहीं होता बशतेZ आत्म विश्वास हो। 11. संपर्क : पायल इंटरप्राइजेज, विकास काम्पलेक्स के पास, पावर हाउस रोड कोरबा (छ.्ग.) फोन नं. 07759-222686, 223686
रचना, लेखन, फोटो एवं प्रस्तुति,
प्रो. अिश्वनी केशरवानी
राघव, डागा कालोनीचांपा-495671 (छत्तीसगढ़)
2 टिप्पणियां:
प्रेरक प्रसंग..यही जीने का जज्बा है. आभार इस प्रस्तुतिकरण के लिये.
प्रेरणास्त्रोत बनने लायक हैं आप तो.........
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