शुक्रवार, 23 नवंबर 2007

कहां खो गया मेरा गांव

कहां खो गया मेरा गांव

प्रो. अश्विनी केशरवानी
शबरीनारायण, जी हां ! लोग मुझे इसी नाम से जानते हैं। लोग मेरे नाम का विश्लेषण करते हुए कहते हैं कि जहां शबरी जैसी मीठे बेर चुनने वाली भीलनी और साक्षात् भगवान नारायण का वास हो, उस पतित पावन स्थान को ही शबरीनारायण कहते हैं। मेरी पवित्रता में चार चांद लगाती हुई चित्रोत्पला-गंगा (महानदी) बहती है। हालांकि वह गंगा के समान पवित्रता को समेटे हुए है। इसी महानता के कारण उसे महानदी कहते हैं। इससे मेरा मान बढ़ा है। कवि श्री धनसाय विदेह के मुख से :-
धन्य धन्य शबरीनारायण महानदी के तीर।जहां कभी पद कमल धरे थे रामलखन दो वीर।।धन्य यहां की वसुन्धरा, धन्य यहां की धूल।धन्य सहां की शबरीनारायण का दर्शन सुखमूल।।
महानदी की पवित्रता से इंकार कैसा ? लेकिन उसकी धार के साथ आ रही रेती से नदी उथली होती जा रही है, दोनों तट पर मिट्टी के कटाव बढ़ने से नदी का पार चौड़ा होता जा रहा है और थोड़ी बरसात हुई नहीं कि पानी बस्ती के भीतर। एक बार, दो बार नहीं बल्कि कई बार महानदी में आई बाढ़ से प्रलय जैसा दृश्य उपस्थित होता रहा है और ठाकुर जगमोहनसिंह जैसे कवि की लेखनी चलने लगती है:-
शबरीनारायण सुमिर भाखौ चरित रसाल।महानदी बूड़ो बड़ो जेठ भयो विकराल।।अस न भयो आगे कबहुं भाखै बूढ़े लोग।जैसी वारिद वारि भरि ग्राम दियो करि सोग।।शिव के जटा बिहारिनी बड़ी सिहावा आय।गिरि कंदर मंदर सबै टोरि फोरि जल जाय।।
सन १८६१ में जब बिलासपुर जिला बना तब बिलासपुर के अलावा दो अन्य तहसील क्रमश: शबरीनारायण और मुंगेली बनाया गया। इसके पूर्व न्यायालयीन कार्य क्रमश: खरौद और नवागढ़ में होता था। अंग्रेजों ने तब यहां पुलिस थाना, प्राइमरी स्कूल आदि खुलवाया था। तब मैं भोगहापारा और महंतपारा में बटा था। तहसील कार्यालय पंडित यदुनाथ भोगहा के भवन में लगता था। यदुनाथ भोगहा, महंत अर्जुनदास और माखन साव यहां आनरेरी बेंच मजिस्‍ट्रेट थे। महंत अर्जुनदास के बाद महंत गौतम दास और माखन साव के बाद खेदूराम साव यहां के आनरेरी मजिस्ट्रेट नियुक्त हुये थे। विजयराघवगढ़ के राजकुमार ठाकुर जगमोहनसिंह यहां के तहसीलदार थे। वे सुप्रसिद्ध साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चंद्र के सहपाठी थे। ठाकुर साहब ने न केवल इस क्षेत्र के नदी-नालों, अमराई, वन पर्वतादिक को घूमा बल्कि उन्हें अपनी रचनाओं में समेटा भी है। इसके अलावा वे यहां के बिखरे साहित्यकारों को एक सूत्र में पिरोकर उन्हें लेखन की दिशा प्रदान की और इसे सांस्कृतिक के साथ ही साहित्यिक तीर्थ की मान्यता दिलायी। उस समय पंडित अनंतराम पाण्डेय (रायगढ़), पंडित पुरूषोत्तम प्रसाद पाण्डेय (बालपुर), पंडित मेदिनी प्रसाद पाण्डेय (परसापाली), वेदनाथ शर्मा (बलौदा), ज्वालाप्रसाद तिवारी (बिलाईगढ़), काव्योपाध्याय हीरालाल (धमतरी) आदि यहां काव्य साधना के लिए आया करते थे। यहां भी पंडित मालिकराम भोगहा, पंडित हीराराम त्रिपाठी, गोविन्द साव और पंडित शुकलाल पाण्डेय जैसे उच्च कोटि के साहित्यकार हुए। कुथुर के श्री बटुकसिंह चौहान और तुलसी के जन्मांध कवि नरसिंहदास वैष्णव ने इसे अपनी साधना स्थली बनायी। प्राचीन साहित्य में यह उल्लेख मिलता है कि ठाकुर जगमोहन सिंह ने यहां काशी के ''भारतेन्दु मंडल`` की तर्ज में ``जगमोहन मंडल'' की स्थापना की थी। वे यहां सन् १८८२ से १८८७ तक रहे और लगभग एक दर्जन पुस्तकें लिखकर प्रकाशित करायी। कुछ पुस्तकें अधूरी थी जिसे वे कूचविहार स्टेट में रहकर पूरा किया था। पंडित मुकुटधर पाण्डेय ने भी एक जगह लिखा है कि ``मेरे पूज्याग्रज श्री पुरूषोत्तम पाण्डेय नाव की सवारी से शबरीनारायण जाया करते थे। वहां के पंडित मालिकराम भोगहा से उनकी अच्छी मित्रता थी। भोगहा जी भी अक्सर बालपुर आया करते थे। आगे चलकर लोचनप्रसाद जी ने भोगहा जी को गुरूतुल्य मानकर उनकी लेखन शैली को अपनाया था।``अंग्रेज जमाने के पुलिस थाने में आज तक कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। शायद सरकार को पुरानी चीजों को मौलिक रूप में सहेज कर रखने की आदत हो गयी है। उस समय इस थाने का कार्य क्षेत्र बहुत विशाल था, आज उसमें कटौती कर दी गयी है..जगह जगह पुलिस थाना और चौकी बना दिया गया है। मीडिल स्कूल अब हाई स्कूल अवश्य हो गया है, संस्कृत पाठ शालाएं बंद हो गई हैं और कन्या हाई स्कूल, सरस्वती विद्यालय और कान्वेंट स्कूल आदि खुल गये हैं। स्कूलों की गिरती दीवारें, टूटते छप्पर, वहां का हाल सुनाने के लिए पर्याप्त है। स्कूलों में शिक्षक की कमी तो लगभग सभी स्कूलों में है, तो यहां कैसे नहीं होगी ? एक बार मुझे यहां के गौरवशाली स्कूल में जाने का सौभाग्य मिला और वहां की स्थिति देखकर वह बात याद आ गयी जिसमें कहा गया है कि``... स्वयं अभावों में रहकर बच्चों के अच्छी पढ़ाई की कल्पना कैसे की जा सकती है ?`` यहां तो शिक्षक ही घंटी बजाता है, झाड़ू लगाता है और टूटी-फूटी कुर्सी में बैठता है। साहित्य समाज का दर्पण होता है, हमारे समाज का साहित्य आज ऐसी स्थिति में पहुंच गया है कि अगर हम समय रहते उचित कदम नहीं उठाते हैं तो हमारे समाज की विकृति हमारी नौनिहालों के भविष्य को नष्ट कर देगी ?
महानदी अपनी विनाश लीला दिखाने में कभी पीछे नहीं रही। महानदी में एक गंगरेल बांध और दूसरा हीराकुंड बहुद्देशीय बांध बनाया गया है जिससे बाढ़ में कमी अवश्य आयी है। लेकिन सन् १८८५ और १८८९ में जो विनाशकारी बाढ़ आयी थी जिससे यहां के तहसील के कागजात बह गये थे और अंग्रेज अधिकारी शबरीनारायण को बाढ़ क्षेत्र घोषित कर पूरा गांव खाली करने का आदेश दे दिया था। मगर भगवान नारायण के भक्त इस गांव को खाली नहीं किये... बल्कि उनकी आस्था भगवान नारायण के उपर बढ़ गयी। तहसील मुख्यालय तो चाम्पा के जमींदार की सहमती से जांजगीर में स्थापित कर दिया गया। आज जांजगीर जिला मुख्यालय बन गया है लेकिन शबरीनारायण के हिस्से में ले देकर उप तहसील मुख्यालय ही आ सका है।कितनी विडंबना है कि लोग मेरे नाम की पवित्रता और धार्मिक महत्ता का बखान करते अघाते नहीं है, लेकिन मेरे नाम का कोई पटवारी हल्का नहीं है। मेरा अस्तित्व महंतपारा और भोगहापारा के रूप में है। प्राचीन काल में यह क्षेत्र दंडकारण्य फिर दक्षिण कोसल और आज छत्तीसगढ़ का एक छोटा सा भाग है। जब दंडकारण्य के इस भाग को खरदूषण से मुक्ति मिल गयी तब यहां मतंग ऋषि का गुरूकुल आश्रम था जहां शबरी परिचारिका थी।... और शबरी को दर्शन देकर कृतार्थ करने भगवान श्रीराम और लक्ष्मण यहां आये थे। द्वापरयुग में यह एक घनघोर वन था। तब इस क्षेत्र को सिंदूरगिरि कहा जाता था। इसी क्षेत्र में एक कुंड के किनारे बांस पेड़ों के बीच भगवान श्रीकृष्ण के मृत शरीर को जरा नाम का शबर लाकर उसकी पूजा-अर्चना करने लगा। बाद में पुरी (उड़ीसा) में भव्य मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हुआ तब आकाशवाणी हुई कि ``दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में शिव गंगा का संगम के निकट बांस के घने वनों के बीच रखी मूर्ति को लाकर स्भापित करो..`` आगे चलकर उस मूर्ति को पुरी में भगवान जगन्नाथ के रूप में स्थापित किये। उनके यहां ये चले जाने के बाद उनका नारायणी स्वरूप यहां गुप्त रूप से विद्यमान रहा। तब से इसे ``गुप्तधाम`` के रूप में ``पांचवां धाम`` होने का सौभाग्य मिला। उस पवित्र कुंड को ''रोहिणी कुंड`` कहा गया। इस कुंड को श्री बटुक सिंह चौहान ने एक धाम माना है जबकि सुप्रसिद्ध साहित्यकार पंडित मालिकराम भोगहा ने ''शबरीनारायण माहात्म्य'' में उसे मुक्ति धाम बताया हैं :-
रोहिणि कुंडहि स्पर्श करि चित्रोत्पल जल न्हाय।योग भ्रश्ट योगी मुकति पावत पाप बहाय ।।भगवान नारायण की पूजा-अर्चना में यहां का भोगहा परिवार ६० पुश्तों से करते आ रहे हैं। उनको ``भोगहा`` उपनाम भगवान को भोग लगाने के कारण ही मिला है। आगे चलकर भोगहापारा उनकी मालगुजारी हुई। भोगहा जी ने माखन साव के परिवार को हसुवा से यहां बसाया। इस क्षेत्र के सभी राजा-महाराजा, जमींदार और मालगुजारों से भोगहा जी की मित्रता थी। उन्हीं के कहने पर सोनाखान के जमींदार रामाराय ने अपने बारापाली गांव को भगवान नारायण मंदिर में चढ़ा दिया था। ये सब माफी गांव हैं और मठ के अधीन हैं।
यहां के सभी मंदिरों की भोग रागादि की व्यवस्था मठ से होती है। श्रद्धालुओं द्वारा जितने भी गांव मंदिर में चढ़ाए गये उनकी देखरेख भी मठ के द्वारा होती है। प्राचीन काल में शबरीनारायण नाथ सम्प्र्रदाय के तांत्रिकों गढ़ था। नारायण मंदिर के दक्षिणी द्वार पर दो छोटे मंदिर है,उसी में कनफड़ा बाबा और नाकफड़ा की मूर्ति है जो नाथ सम्प्रदाय के तांत्रिकों के गुरू थे। स्वामी दयाराम दास तीर्थाटन करते रत्नपुर आये। उनसे प्रभावित होकर रत्नपुर के राजा उन्हें शबरीनारायण क्षेत्र में निवास करने की प्रार्थना की और कुछ माफी गांव दिए। यहां आकर उन्होंने तांत्रिकों से शास्त्रार्थ किया और इस क्षेत्र को छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। उन्होंने ही यहां वैष्णव पीठ की स्थापना की। इस मठ के वे पहले महंत हुए। तब से आज तक १४ महंत एक से बढ़कर एक थे। वर्तमान में श्री रामसुन्दरदास यहां के महंत हैं। महंतों ने इस क्षेत्र में धर्म के प्रति जागृति पैदा की, अंचल की परम्पराओं को संरक्षित किया। उनकी मालगुजारी महंतपारा में माघ पूर्णिमा को मेला का आयोजन करना, उसकी व्यवस्था करने में महंत का अविस्मरणीय योगदान रहा है। भोगहा जी भी भोगहापारा में मेला लगाने की कोशिश की मगर उनको सफलता नहीं मिली। बहरहाल, यहां का मेला सुव्यवस्थित होता है। पहले यहां का मेला एक माह तक लगता था लेकिन अब १५ दिन तक लगता है। मान्यता है कि माघ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ यहां विराजमान होते हैं। इस दिन उनका दर्शन मोक्षदायी होता है। कदाचित् इसी कारण यहां श्रद्धालुओं की अपार भीड़ होती है। यहां के मेला को ''छत्तीसगढ़ का महाकुंभ'' कहा जाता है। हालांकि महाकुंभ हर १२ वर्ष में लगता है लेकिन यहां महाकुंभ जैसी भीड़ हर वर्श होती है।हां तो मैं कह रहा था... पहले ले देकर महंतपारा और भोगहापारा को मिलाकर ग्राम पंचायत बनाया गया और सरपंच बने श्री तिजाऊप्रसाद केशरवानी। ११ वर्ष तक तन मन से उन्होंने नगर की सेवा की, कई शासकीय दफ्तर खुलवाये, स्कूल भवन, पंचायत भवन, भारतीय स्टैट बैंक भवन, बिजली आफिस भवन आदि का निर्माण करवाये। नदी के बढ़ते कटाव को रोकने के लिए पाट बनवाये, सब्जी बाजार लगवाये। मवेशी बाजार की वसूली का अधिकार जनपद पंचायत जांजगीर से प्राप्त कर पंचायत की आय में बृद्धि की। नदी में तरबूज और खरबूज की खेती करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया। मैं बचपन से ही यहां के बिजली खम्भों में ट्यूब लाइट और मरकरी देखते आ रहा हंू। ग्राम न्यायालय गांवों में आज लागू हुआ है जबकि शिवरीनारायण में बहुत पहले से ही लागू है।...न जाने कितने परिवारों को बिखरने और टूटने से बचाया है श्री तिजाऊप्रसाद ने, लेकिन आज अपने ही परिवार को बिखरने ने नहीं बचा पा रहे हैं। इसके बाद श्री सुरेन्द्र तिवारी सरपंच बने। नया खून, नया जोश..लोगों को भी उनसे बहुत आशाएं थी। मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। हां, उसके बाद यह नगरपालिका बना और प्रथम नगरपालिका अघ्यक्ष बनने का सौभाग्य हासिल किया श्री विजयकुमार तिवारी ने। जन्म भर की कांग्रेस की सेवा करने का पुरस्कार था यह। सन् १९८० में यहां भयानक बाढ़ आयी और खूब तबाही मचायी..कई स्वयं सेवी संस्थाएं आसूं पोंछने आये, कई नेता आये और अनेक घोषणाएं भी की मगर मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री अर्जुन सिंह ने महानदी में पुल निर्माण की जो घोषणा की थी वह अवश्य पूरी हो गयी है जिससे यहां विकास का मार्ग खुल गया है। यहां की जनता उनके प्रति आभारी है। तत्कालीन केंद्रीय मंत्री श्री विद्याचरण शुक्ल ने महानदी के कटाव को रोकने के लिए दोनों ओर तटबंध निर्माण कराने की घोषणा की थी, लेकिन वे उनके कार्यकाल में उनकी घोषणा पूरा नहीं हो सका। छत्तीसगढ़ शासन की जागरूकता से महानदी के तट में घाट का निर्माण कराया जा रहा है जिससे निश्चित रूप से कटाव रूकेगा।....लेकिन जर्जर सड़कें, गंदगियों की भरमार, बीमार अस्पताल, नगर पंचायत का खस्ता हाल, बनारस की याद दिलाते यहां के गंदगियों से भरे घाट और आपस में लड़ते-मरते लोग आज की उपलब्धि है। श्री बल्दाऊ प्रसाद केशरवानी ने अपने दादा श्री प्रयागप्रसाद केशरवानी की स्मृति में उनके जीते जी एक चिकित्सालय का निर्माण कराया, उसमें श्री देवालाल केशरवानी ने अपने दादा स्व. श्री पचकौड़प्रसाद साव की स्मृति में विद्युतीकरण कराया तो लोगों को अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग होने का अहसास हुआ। डॉ. एम. एम. गौर को लोग अब भूल गये हैं लेकिन उन्हीं की प्रेरणा और सहयोग से ऐसा संभव हुआ था। उनके बाद डॉ. बी. बी. पाठक, फिर डॉ. शुक्ला, डॉ. आहूजा, डॉ. बी. पी. चंद्रा, डॉ. वर्मा, डॉ. जितपुरे और डॉ शकुन्तला जितपुरे, डॉ. बोडे आये और चले गये मगर आज यह नगर एक अद्द डॉ. के लिए तरस रहा है। दानदाता की बात निकली है तो कहना अनुचित नहीं होगा कि लोगों ने दान के नाम पर नगर को बहुत छला है। श्री जगन्नाथ प्रसाद केशरवानी शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय और २० बिस्तर वाला जुगरीबाई प्रसूती गृह का शिलान्यास क्रमश: श्री विद्याचरण शुक्ला और कु. बिमला वर्मा ने किया था। इस अस्पताल में ऑपरेशन थियेटर के निर्माण की घोषणा श्री गणेशप्रसाद नारनोलिया ने की थी। श्री परसराम केशरवानी और श्री तिजराम केशरवानी ने अपने बच्चों की स्मृति में एक एक कमरा पेइंग वार्ड के लिये बनवाने की घोषणा की थीे। मगर घोषणाएं तो वाहवाही के लिए होती हैं, उसे पूरा करना जरूरी नहीं होता ? दानदाताओं के द्वारा दान में दिया गया भवन शासन लेता जरूर है मगर उसकी देखभाल नहीं करता और भवन जर्जर होकर गिर जाता है..। शासन आज ऐसे पब्लिक सेक्टर के शासकीय कार्यालयों को जनभागीदरी से संचालित करता जा रहा है तो दान में दिये गये भवनों की सुरक्षा, उसकी देखभाल आदि की जिम्मेदारी शासन क्यों नहीं लेता। इससे लोगों में दान के प्रति झुकाव कम हुआ है। यही हाल स्कूल भवनों का है। एक तो ८० प्रतिशत स्कूलों के अपने भवन नहीं हैं और जहां है उसकी देखरेख नहीं हो पा रहा है। शासन की यह नीति कहां तक उचित है ? अस्पताल में न डॉक्टर है, न स्कूलों में शिक्षक...न जाने कैसा होगा मेरा भविष्य ?भगवान नारायण के अनेक रूप जैसे केशवनारायण ,लक्ष्मीनारायण, राधाकृृष्ण, जगन्नाथ के मंदिर यहां हैं। इसी प्रकार औघड़ दानी शिव के अनेक रूप जैसे महेश्वरनाथ, चंद्रचूड़ महादेव, श्रीराम लक्ष्मण जानकी मंदिर, मां अन्नपूर्णा मंदिर, मां काली मंदिर आदि अन्यान्य मंदिर दर्शनीय है। महानदी का मुहाना बड़ा मनोरम है। छत्तीसगढ़ शासन शिवरीनारायण को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया है जिसके लिए वह बधाई के पात्र हैं। यहां की जनता उनके प्रति आभारी है। इस महाकंुभ के अवसर पर सारे जगत को जगन्नाथ धाम का दर्शन कराने वाला और मोक्ष देने वाला है..तभी तो कवि हीराराम त्रिपाठी गाते हैं :-
होत सदा हरिनाम उच्चारण रामायण नित गान करै।अति निर्मल गंग तरंग लखै उर आनंद के अनुराग भरै।।शबरी बरदायक नाथ विलोकत जन्म अपार के पाप हरै।जहां जीव चारू बखान बसै सहज भवसिंधु अपार तरै।।
रचना, लेखन और प्रस्तुति
प्रो. आश्विनी केशरवानी राघव, डागा कालोनी, चांपा (छ.ग.)

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