चांपा का कोसा अंतर्राष्ट्रीय बाजार में लेकिन बदहाल है कोसा बुनकर
- प्रो. अश्विनी केशरवानी
चांपा, छत्तीसगढ़ प्रदेश के जांजगीर-चांपा जिलान्तर्गत राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 200 में स्थित दक्षिण पूर्वी मध्य रेल्वे का ऊर्जा नगरी के जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण जंक्शन है जो 22.2 अंश उत्तरी अक्षांश और 82.43 अंश पूर्वी देशांश पर स्थित है। समुद्र सतह से 500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हसदो नदी के तट पर बसा यह नगर अपने प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है। कोरबा रोड में मड़वारानी की पहाड़ियां, मदनपुर की झांकियां, बिछुलवा नाला, केरा झरिया, हनुमान धारा और पीथमपुर के छोटे-बड़े मंदिर चांपा को दर्शनीय बनाते हैं। यहां का रामबांधा देव-देवियों के मंदिरों से सुशोभित और विशाल वृक्षों से परिवेष्ठित और राजमहल का मनोरम दृश्य है। यहां मित्रता के प्रतीक समलेश्वरी देवी और जगन्नाथ मठ उड़िया संस्कृति की साक्षी हैं। डोंगाघाट स्थित श्रीराम पंचायत, वीर बजरंगबली, राधाकृष्ण का भव्य मंदिर, तपसी बाबा का आश्रम, मदनपुर की महामाया और मनिकादेवी, हनुमान धारा में हनुमान मंदिर, पीथमपुर का कलेश्वरनाथ का मंदिर और कोरबा रोड में मड़वारानी का मंदिर छत्तीसगढ़ी संस्कृति कर जीता जागता उदाहरण है। कवि श्री विद्याभूषण मिश्र की एक बानगी पेश है :-
जहां रामबांधा पूरब में लहराता है
पश्चिम में केराझरिया झर झर गाता है।
जहां मूर्तियों को हसदो है अर्ध्य चढ़ाती
भक्ति स्वयं तपसी आश्रम में है इठलाती
सदा कलेश्वरनाथ मुग्ध जिस पर रहते हें
तपसी जी के आशीर्वचन जहां पलते हैं
वरद्हस्त समलाई देवी का जो पाते
ऐसी नगर की महिमा क्या भूषण गाये।
प्राचीन काल में चांपा एक जमींदारी थी। जमींदार स्व. नेमसिंह के वंशज अपनी जमींदारी का सदर मुख्यालय मदनपुरगढ़ से चांपा ले आये थे। रामबांधा, लच्छीबांधा और दोनों ओर से हसदो नदी से घिरा सुरक्षित महल का निर्माण के साथ चांपा जमींदारी का अपना एक उज्जवल इतिहास है।
चांपा में कोसा व्यवसाय :-
चांपा, छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक महत्वपूर्ण नगर है। आज इसे कोसा, कांसा, कंचन की नगरी कहा जाता है। मध्य भारत पेपर मिल की स्थापना और कागज के उत्पादन से एक नाम और जुड़ गया है। प्रकाश स्पंज आयरन लिमिटेड के अलावा चांपा के आसपास अनेक औद्योगिक प्रतिष्ठान के आने से यह औद्योगिक नगर बन गया है। यहां के गलियों में जहां कोसे की लूम की खटर पिटर सुनने को मिलता है वहीं सोने-चांदी के जेवरों के व्यापारी अवश्य मिल जायेंगे। यहां की तंग और संकरी गलियों में भव्य और आलीशान भवन से यहां की भव्यता का अंदाजा लगाया जा सकता है। चांपा जमींदार के द्वारा आर्थिक सम्पन्नता के लिए व्यवसायी परिवारों को यहां आमंत्रित कर बसाया गया था। इनमें श्री गंगाराम श्रीराम देवांगन, श्री पतिराम लखनलाल देवांगन, श्री गणेशराम शालिगराम देवांगन, श्री नंदकुमार देवांगन, श्री रामगुलाम नोहरलाल देवांगन, श्री बहोरनलाल महेशराम देवांगन, श्री चतुर्भुज मनोहरलाल देवांगन, श्री मोतीराम माखनलाल देवांगन, श्री सदाशिव तिलकराम देवांगन, श्री दाऊराम देवांगन, श्री बिहारीलाल रंजीतराम देवांगन, श्री नारायण प्रसाद बेनीराम देवांगन और श्री परागराम पीलाराम देवांगन का परिवार प्रमुख है। इसके अलावा अनेक देवांगन परिवार भी यहां आकर बसे। इनमें प्राय: सभी कोसा बुनकरी का कार्य करते थे। बुनकर परिवारों का सही आंकड़ा देवांगन समाज के लोग भी नहीं बता सके। लेकिन एक अनुमान है कि नगरपालिका क्षेत्र में लगभग 1300 से 1500 परिवार निवास करते हैं और लगभग 5000 मतदाता हैं। हर मुहल्ले का मुखिया 'मेहर' कहलाता है। कुछ लोगों का बुनकरी के साथ कोसा का व्यवसाय अच्छा चलने लगा और वे महाजन कहलाने लगे और जैसे कहावत है कि 'पैसा पैसा कमाता है.. पैसे की आवक हुई और वे 'साव' कहलाने लगे। ऐसे लोग पैतृक बुनकरी के बजाय दुकान चलाने लगे। वे कोसे बुनकरी का कच्चा समान बुनकर परिवारों को देकर ग्राहकों की आवश्यकतानुसार कपड़ा बनवाकर बाजार में बेचने लगे। धीरे धीरे कपड़ों के डिजाइन में परिवर्तन होने लगा... सिंथेटिक कपड़ों के समान रंगीन, कसीदाकारी युक्त, उड़िया बार्डर और ब्लीच्ड कपड़ों का आकर्षण लोगों को कोसा कपड़ों की ओर खींचने लगा। आज सभी मौसम में कोसा सूटिंग, शटिंग, धोती-कुर्ता, सलवार सूट और साड़ियों का विशाल कलेक्शन बाजार में उपलब्ध है। इन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बेचकर आर्थिक सम्पन्नता हासिल की जा रही है। आज देश के सभी बड़े शहरों कलकत्ता, मुम्बई, नेपाल, चेन्नई, बेंगलोर, हैदराबाद, सिकंदराबाद, अहमदाबाद, नागपुर, जबलपुर, इंदौर, भोपाल, विशाखापट्टनम, दिल्ली, जयपुर, आदि में चांपा के कोसे का व्यवसाय फैला हुआ है।
कोसा व्यवसाय और श्री बिसाहूदास महंत :-
अविभाजित मध्यप्रदेश में तहसील स्तर में केवल चांपा में ही इंडस्ट्रियल ईस्टेट बनाया गया था। तब यहां छोटे मोटे उद्योग के अलावा कोसा, कांसा और सोने-चांदी के जेवर बनाने का कार्य कुटीर उद्योग के रूप में प्रचलित था। लोग अपने घरों में कोसे की साड़ियां, धोती और कुर्ते का कपड़ा बनाकर बाजार में बेचते थे। उस समय कोसा कपड़े के खरीददार नहीं होते थे। कुछ सेठ-महाजन ही पूजा-पाठ के समय इसका उपयोग करते थे। कदाचित इसी कारण इसका ज्यादा प्रचलन नहीं था। चांपा से 14 कि. मी. की दूरी पर स्थित सारागांव के श्री बिसाहूदास महंत चांपा विधानसभा के पहले विधायक फिर मध्यप्रदेश शासन में केबिनेट मंत्री बने। चांपा की गलियों और घरों में कोसा कपड़ों को बनते उन्होंने देखा था। कुछ देवांगन (बुनकर) परिवार से उनका बहुत ही अच्छा सम्बंध था। वे अक्सर उन्हें कोसा व्यवसाय को अन्य शहरों में भी फैलाने की सलाह दिया करते थे। लेकिन बुनकर परिवार आर्थिक रूप से सक्षम नहीं थे और कोसा कपड़ा की बनावट उतना आकर्षक भी नहीं था जिसे वे अन्य शहरों में ले जाते ? हां कुछ लोग कोसा कपड़ा/धोती और साड़ी को पवित्र तथा पूजा-पाठ में प्रयुक्त होने वाला कपड़ा मानने के कारण चांपा से खरीदकर अवश्य ले जाते थे। लेकिन श्री बिसाहूदास महंत जी के सद्प्रयास से ही चांपा के कोसा व्यवसायी यहां के कोसा कपड़ों को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में ले जाने में सफल हो गये। इसके लिए मध्यप्रदेश शासन में टेक्टाइल कारपोरेशन की स्थापना भी करायी थी जिसके माध्यम से कोसा कपड़ों को बाजार मिला और यह पूरे देश में लोकप्रिय हो गया। यहां के व्यवसायी नवीनतम तकनीक को अपनाकर कोसा के कपड़ों को आकर्षक डिजाइनों में बाजार में प्रस्तुत किया जिसे लोगों ने बहुत पसंद किया। आज कोसा अनेक आकर्षक डिजाइनों में सिंथेटिक कपड़ों के समान चांपा के बाजार में मिलने लगा है। आज कोसा कपड़ा न केवल पूजा-पाठ के समय पहनने वाला कपड़ा रह गया है वरन अनेक अवसरों, आयोजनों में पहनने का कपड़ा हो गया है।
चांपा के बुनकर परिवार :-
आज चांपा में अपना देवांगन समाज है। जांजगीर-चांपा जिले के चांपा, सिवनी, उमरेली, सक्ती, बाराद्वार, ठठारी, बेलादुला, मालखरौदा, जांजगीर, बलौदा, आदि में देवांगन परिवार रहते हैं। केवल चांपा में ही लगभग एक हजार देवांगन (बुनकर) परिवार निवास करते हैं। इनमें से अधिकांश परिवार कोसा कपड़े का बुनकरी का कार्य करते हैं। यहां के हर गली-मुहल्ले में हाथ करघे की खट खट सुनने को मिल जायेगी। बुनकर लोग पान ठेला, सब्जी, दूध, गल्ला-किराना, सोने-चांदी और कपड़े आदि का व्यवसाय करने लगे हैं। ऐसे लोगों का कहना है कि इस व्यवसाय में उन्हें उतनी आमदनी नहीं होती जिससे उनके परिवार का गुजारा चल सके। कुछ लोग नौकरी भी करने लगे हैं और अच्छे पदों पर पदस्थ हैं। श्री संतोष कुमार देवांगन अनुविभागीय अधिकारी, राजस्व के पद पर पत्थलगांव में पदस्थ हैं। श्री छतराम देवांगन बलौदा विधानसभा के विधायक और छ. ग. शासन में संसदीय सचिव और श्री मोतीलाल देवांगन चांपा विधानसभा के विधायक हैं। श्री कमल देवांगन छत्तीसगढ़ राज्य हाथकरघा विकास एवं विपणन सहकारी संघ मर्यादित, रायपुर के अध्यक्ष हैं। कुछ लोग अपने पैतृक व्यवसाय के अलावा अन्य व्यवसाय को अपनाने लगे हैं। इसके बावजूद चांपा के कोसा कपड़ों की मांग अमरीका, यूरोप, जर्मनी, इटली, फ्रांस, चीन, नेपाल, कनाडा, इंग्लैंड और स्विटजरलैंड आदि में बहुतायत में हैं। कुछ व्यापारी यहां से सीधे कोसा के कपड़े सीधे विदेश भेजते हैं और कुछ दूसरे व्यापारी के माध्यम से भेजते हैं।
बदहाल बुनकर :-
इतने अच्छे कोसा के कपड़ों को बनाने वाले बुनकरों की हालत बहुत अच्छी नही है। रात दिन कड़ी मेहनत करने वाले बुनकर अपने परिवार के पेट की आग को शांत करने में अक्षम हैं। ऐसे एक बुनकर ने बताया कि रेशम संचालनालय के सिवनी कार्यालय से आम बुनकरों को कोसे का धागा नहीं मिल पाता क्योंकि वहां भी महाजनों का कब्जा है। मजबूरी में उन्हें महाजनों से धागा खरीदकर कपड़ा बुनना पड़ा है। पिछले साल सिवनी में पंद्रह लाख कोसा फल आया था लेकिन आम बुनकर को एक भी फल नहीं मिल पाया, उसे महाजन और उनके संपर्क में रहने वाले बुनकर खरीद लिए। दलालों के माध्यम से कोसा फल खरीदने पर उन्हें शासन की दर से तीन गुने अधिक दर में कोसा फल खरीदना पड़ता है। आज अधिकांश कोसे के व्यवसायी कोसा फल अथवा धागा वजन करके देता है और ग्राहकों की मांग के अनुरूप बुनकर कपड़े की बुनाई करके केवल मजदूरी पाता है। एक अन्य बुनकर ने बताया कि उन्हें पैंतीस मीटर कपड़े की मजदूरी सिर्फ सात सौ रूपये, एक शाल की बुनाई मात्र सत्तर रूपये, एक साड़ी की बुनाई सिर्फ ढाई सौ रूपये मिलता है। यही कपड़े राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चार से दस गुने अधिक दामों में बेचे जाते हैं।
कोसे की इल्लियां :-
शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय चांपा में टसर टेक्नालॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. अश्विनी केशरवानी ने बताया कि सामान्यतया कोसा की इल्लियां साल, सागौन, शहतूत और अर्जुन की पत्तियों को खाकर ककून बनाती हैं। ककून से धागा निकालकर कपड़े की बिनाई की जाती है। ये निम्न प्रकार के होते हैं :-
1- मलबरी कोसा :- यह छोटे आकार का मुलायम कोसा होता है। इसका रंग सफेद, पिला, केसरिया और हल्का पीला होता है।
2- तसर कोसा :- इसके रेशे का रंग भूरा, पीला, काला व सफेद होता है।
3- मूंगा कोसा :- यह मलबरी कोसे के समान होता है। इसके रेशे का रंग सुनहरा होता है। इसका सर्वाधिक उत्पादन आसाम में होता है। रंग के आधार पर इसे गोल्डन सिल्क भी कहा जाता है।
4- ऐरी कोसा :- इसका रंग पीला व सफेद होता है। इसका उत्पादन देश के पूर्वी प्रदेश आसाम, त्रिपुरा, मेघालय के अलावा उत्तरप्रदेश, में होता है।
5- पोली कोसा :- यह सामान्य आकार से बड़े व छोटे आकार में पाये जाते हैं। जब कोसा की तितली के द्वारा कोसा फल (ककून) बनाने के बाद वह उसे छेदकर बाहर निकल आती है जिससे ककून पोली हो जाती है। इसीलिए इसे पोली कोसा कहा जाता है।
6- रैली कोसा :- इसका रंग काला और आकार बड़ा होता है। इसके धागे को ही रैली धागा कहा जाता है। साल, महुवा आदि पेड़ों पर इसका उत्पादन किया जाता है।
7- मोमरा कोसा :- जिसमें कोसे का धागे कम मात्रा में और बड़ी मुश्किल से निकलता है उसे मोमरा कोसा कहते हैं।
कोसा और रोजगार :-
रोजगार की दृष्टि से कृषि के बाद हाथ करघा उद्योग को महत्वपूर्ण माना गया है। इससे रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या पूरे देश में लगभग दो करोड़ है। इसी प्रकार कुल राष्ट्रीय आय में हाथ करघा उद्योग का लगभग सात प्रतिशत होता है। पूरे देश में लगभग एक करोड़ हाथ करघा और पावर लूम हैं। इससे लगभग दो करोड़ व्यक्तियों को रोजगार प्राप्त है। पूरे छत्तीसगढ़ में रायगढ़, जशपुर, सरगुजा, कोरिया, जगदलपुर, बिलासपुर, कोरबा और जांजगीर-चांपा और पाली में ककून का उत्पादन होता है। कोसे के फल (ककून) से लगभग 1000 से 1200 मीटर धागा निकलता है। आजकल कोसे के धागे की जगह कोरिया से एक विशेष प्रकार के धागा जो कोसे के धागे के समान होता है, उपयोग किया जाता है।
सरकारी योजनाएं :-
राज्य और केंद्रीय शासन की ऐसी बहुत सी योजनाएं हैं जिनकी जानकारी सहकारी और स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम लोगों को देने का प्रावधान है लेकिन बुनकरों का कहना है कि ऐसा नहीं होता। जो उनके संपर्क में रहता है उन्हें ही इसकी जानकारी मिल पाती है। इसीलिए वे इस योजनाओं का लाभ नहीं ले पाते। ऐसी संस्थाओं में भी बड़े महाजनों और दलालों का कब्जा होता है। श्री कमल देवांगन, अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ राज्य हाथकरघा विकास एवं विपणन सहकारी संघ मर्यादित, रायपुर ने एक साक्षात्कार में बताया कि जांजगीर-चांपा जिला में 25 और पूरे प्रदेश में पहले केवल 80-85 बुनकर सहकारी समितियां विपणन संघ से जुड़ी थी लेकिन अभी 127 समितियां कार्यरत हैं। चांपा में पांच समिति क्रमश: तपसी बाबा कोसा बुनकर सहकारी समिति, जय अम्बे कोसा बुनकर सहकारी समिति, गंगा यमुना कोसा बुनकर सहकार समिति, कबीर कोसा बुनकर सहकारी समिति और जागृति कोसा बुनकर सहकारी समिति कार्यरत हें। इन समितियों के माध्यम से बुनकरों को शासन से मिलने वाली सुविधाएं बुनकरों को प्रदान की जाती हैं। उन्होंने बताया कि पूरे देश में चांपा से 5वीं, 8वीं, 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं में 60 से 90 प्रतिशत अंक पाने वाले विद्यार्थियों को माननीय डॉ. रमनसिंह के कर कमलों से पुरस्कार प्रदान किया जावेगा। प्रदेश का विपणन संघ न केवल कोसा बुनकर बल्कि सभी प्रकार के हाथकरघा बुनकरों के उत्थान के लिए प्रयास कर रही है। उनका प्रयास है कि प्रदेश का कोई भी बुनकर खाली न रहे।
कोसे की तकनीकी एवं शिक्षा देने वाली संस्थाएं :-
चांपा में हेंडलूम टेक्नालॉजी का एक राष्ट्रीय संस्थान खोला गया है। इसी प्रकार यहां के शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में बी. एस-सी. टसर टेक्नालॉजी और एड आन कोर्स के रूप में सेरीकल्चर विषय में सर्टिफिकेट कोर्स खोला गया है। इन संस्थानों एवं विषयों को खुलवाने में चांपा विधानसभा के विधायक श्री मोतीलाल देवांगन एवं मध्यप्रदेश शासन के पूर्व मंत्री श्री बलिहार सिंह का योगदान रहा है। निश्चित रूप से इन संस्थानों और विषयों के खुलने से न केवल चांपा बल्कि छत्तीसगढ़ प्रदेश के विद्यार्थियों को लाभ होगा। उन्हें डिग्री के साथ नई तकनालॉजी का ज्ञान होगा जिससे कोसा कपड़ों की बुनकरी में नयापन आयेगा।
कोसा व्यवसाय और पुरस्कार :-
देश के सिध्दहस्त बुनकरों को राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किये जाते हैं। खुशी की बात है कि छत्तीसगढ़ के लगभग एक दर्जन बुनकरों को राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। श्री सुखराम देवांगन को कोसा दुपट्टा बनाने की कला में उल्लेखनीय योगदान के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। इसके पूर्व श्री पूरनलाल देवांगन को 1993 में एवं उनके पुत्र श्री नीलांबर प्रसाद देवांगन को 2002 में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। कोसा कपड़े पर उत्कृष्ट डिजाइन के लिए श्री ओमप्रकाश देवांगन को मुख्य मंत्री डॉ. रमन सिंह ने एक लाख रूपये नगद, शील्ड और प्रशंसा पत्र देकर सम्मानित किया है।
बुनकरों के लिए क्या करें :-
बुनकरों के उत्थान के लिए निम्नलिखित कार्य किया जाना समीचीन होगा :-
1- छत्तीसगढ़ के हाथ करघा उद्योग के विकास एवं विस्तार हेतु देश के प्रमुख शहरों में विक्रय केंद्र (एम्पोरियम) खोला जाना चाहिए।
2- छत्तीसगढ़ में सूती एवं कोसा कपड़ों के निर्यात की अपार संभावनाएं हैं। इसे ध्यान में रखते हुए एक विकसित रंगाई, छपाई एवं प्रोसेसिंग इंस्टीटयूट खोला जाना चाहिए।
3- छत्तीसगढ़ के अधिकांश बुनकर आज भी अपने परंपरागत तरीके से बुनाई करते हैं जबकि आज के वैज्ञानिक युग में फिनिशिंग वर्क की मांग अधिक है। अत: यहां के बुनकरों के लिए उन्नत किस्म के उपकरणों की आवश्यकता है। समय समय पर बुनकरों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम रखा जाना चाहिए।
4- स्वदेशी और निर्यात बाजार में चांपा के कोसा और हाथ करघा वस्त्रों को नई तकनीक देने के लिए बुनकर सेवा संघ चांपा में स्थापित की जानी ताकि बुनकरों में कलस्तर तकनीक को विकसित किया जा सके।
5- केंद्रीय योजनाओं की सही जानकारी सर्व सुलभ कराते हुए उसके सफल क्रियान्वयन कर हाथ करघा उद्योग को अधिकाधिक रोजगारमूलक बनाया जाये।
6- हाथ करघा बुनकरों को यार्न की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु सूती हाथ करघा सघन क्षेत्र रायपुर में एन. एच. डी. सी. के सूती यार्न बैंक की स्थापना की जानी चाहिए।
7- छत्तीसगढ़ में निर्यात संभावनाओं को देखते हुए रायपुर में हैंडलूम एक्सपोर्ट प्रमोशन काऊंसिल कार्यालय शीघ्र की जानी चाहिये।
8- कोसा उत्पादों की बिक्री के लिए नियमित बाजार की आवश्यकता को देखते हुए रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़ और दुर्ग आदि शहरों में दिल्ली हाट के तर्ज पर छत्तीसगढ़ हाट की स्थापना की जानी चाहिये।
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रचना, आलेख, फोटो एवं प्रस्तुति,
प्रो. अश्विनी केशरवानी
राघव, डागा कालोनी, चांपा (छ.ग.)
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- प्रो. अश्विनी केशरवानी
चांपा, छत्तीसगढ़ प्रदेश के जांजगीर-चांपा जिलान्तर्गत राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 200 में स्थित दक्षिण पूर्वी मध्य रेल्वे का ऊर्जा नगरी के जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण जंक्शन है जो 22.2 अंश उत्तरी अक्षांश और 82.43 अंश पूर्वी देशांश पर स्थित है। समुद्र सतह से 500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हसदो नदी के तट पर बसा यह नगर अपने प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है। कोरबा रोड में मड़वारानी की पहाड़ियां, मदनपुर की झांकियां, बिछुलवा नाला, केरा झरिया, हनुमान धारा और पीथमपुर के छोटे-बड़े मंदिर चांपा को दर्शनीय बनाते हैं। यहां का रामबांधा देव-देवियों के मंदिरों से सुशोभित और विशाल वृक्षों से परिवेष्ठित और राजमहल का मनोरम दृश्य है। यहां मित्रता के प्रतीक समलेश्वरी देवी और जगन्नाथ मठ उड़िया संस्कृति की साक्षी हैं। डोंगाघाट स्थित श्रीराम पंचायत, वीर बजरंगबली, राधाकृष्ण का भव्य मंदिर, तपसी बाबा का आश्रम, मदनपुर की महामाया और मनिकादेवी, हनुमान धारा में हनुमान मंदिर, पीथमपुर का कलेश्वरनाथ का मंदिर और कोरबा रोड में मड़वारानी का मंदिर छत्तीसगढ़ी संस्कृति कर जीता जागता उदाहरण है। कवि श्री विद्याभूषण मिश्र की एक बानगी पेश है :-
जहां रामबांधा पूरब में लहराता है
पश्चिम में केराझरिया झर झर गाता है।
जहां मूर्तियों को हसदो है अर्ध्य चढ़ाती
भक्ति स्वयं तपसी आश्रम में है इठलाती
सदा कलेश्वरनाथ मुग्ध जिस पर रहते हें
तपसी जी के आशीर्वचन जहां पलते हैं
वरद्हस्त समलाई देवी का जो पाते
ऐसी नगर की महिमा क्या भूषण गाये।
प्राचीन काल में चांपा एक जमींदारी थी। जमींदार स्व. नेमसिंह के वंशज अपनी जमींदारी का सदर मुख्यालय मदनपुरगढ़ से चांपा ले आये थे। रामबांधा, लच्छीबांधा और दोनों ओर से हसदो नदी से घिरा सुरक्षित महल का निर्माण के साथ चांपा जमींदारी का अपना एक उज्जवल इतिहास है।
चांपा में कोसा व्यवसाय :-
चांपा, छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक महत्वपूर्ण नगर है। आज इसे कोसा, कांसा, कंचन की नगरी कहा जाता है। मध्य भारत पेपर मिल की स्थापना और कागज के उत्पादन से एक नाम और जुड़ गया है। प्रकाश स्पंज आयरन लिमिटेड के अलावा चांपा के आसपास अनेक औद्योगिक प्रतिष्ठान के आने से यह औद्योगिक नगर बन गया है। यहां के गलियों में जहां कोसे की लूम की खटर पिटर सुनने को मिलता है वहीं सोने-चांदी के जेवरों के व्यापारी अवश्य मिल जायेंगे। यहां की तंग और संकरी गलियों में भव्य और आलीशान भवन से यहां की भव्यता का अंदाजा लगाया जा सकता है। चांपा जमींदार के द्वारा आर्थिक सम्पन्नता के लिए व्यवसायी परिवारों को यहां आमंत्रित कर बसाया गया था। इनमें श्री गंगाराम श्रीराम देवांगन, श्री पतिराम लखनलाल देवांगन, श्री गणेशराम शालिगराम देवांगन, श्री नंदकुमार देवांगन, श्री रामगुलाम नोहरलाल देवांगन, श्री बहोरनलाल महेशराम देवांगन, श्री चतुर्भुज मनोहरलाल देवांगन, श्री मोतीराम माखनलाल देवांगन, श्री सदाशिव तिलकराम देवांगन, श्री दाऊराम देवांगन, श्री बिहारीलाल रंजीतराम देवांगन, श्री नारायण प्रसाद बेनीराम देवांगन और श्री परागराम पीलाराम देवांगन का परिवार प्रमुख है। इसके अलावा अनेक देवांगन परिवार भी यहां आकर बसे। इनमें प्राय: सभी कोसा बुनकरी का कार्य करते थे। बुनकर परिवारों का सही आंकड़ा देवांगन समाज के लोग भी नहीं बता सके। लेकिन एक अनुमान है कि नगरपालिका क्षेत्र में लगभग 1300 से 1500 परिवार निवास करते हैं और लगभग 5000 मतदाता हैं। हर मुहल्ले का मुखिया 'मेहर' कहलाता है। कुछ लोगों का बुनकरी के साथ कोसा का व्यवसाय अच्छा चलने लगा और वे महाजन कहलाने लगे और जैसे कहावत है कि 'पैसा पैसा कमाता है.. पैसे की आवक हुई और वे 'साव' कहलाने लगे। ऐसे लोग पैतृक बुनकरी के बजाय दुकान चलाने लगे। वे कोसे बुनकरी का कच्चा समान बुनकर परिवारों को देकर ग्राहकों की आवश्यकतानुसार कपड़ा बनवाकर बाजार में बेचने लगे। धीरे धीरे कपड़ों के डिजाइन में परिवर्तन होने लगा... सिंथेटिक कपड़ों के समान रंगीन, कसीदाकारी युक्त, उड़िया बार्डर और ब्लीच्ड कपड़ों का आकर्षण लोगों को कोसा कपड़ों की ओर खींचने लगा। आज सभी मौसम में कोसा सूटिंग, शटिंग, धोती-कुर्ता, सलवार सूट और साड़ियों का विशाल कलेक्शन बाजार में उपलब्ध है। इन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बेचकर आर्थिक सम्पन्नता हासिल की जा रही है। आज देश के सभी बड़े शहरों कलकत्ता, मुम्बई, नेपाल, चेन्नई, बेंगलोर, हैदराबाद, सिकंदराबाद, अहमदाबाद, नागपुर, जबलपुर, इंदौर, भोपाल, विशाखापट्टनम, दिल्ली, जयपुर, आदि में चांपा के कोसे का व्यवसाय फैला हुआ है।
कोसा व्यवसाय और श्री बिसाहूदास महंत :-
अविभाजित मध्यप्रदेश में तहसील स्तर में केवल चांपा में ही इंडस्ट्रियल ईस्टेट बनाया गया था। तब यहां छोटे मोटे उद्योग के अलावा कोसा, कांसा और सोने-चांदी के जेवर बनाने का कार्य कुटीर उद्योग के रूप में प्रचलित था। लोग अपने घरों में कोसे की साड़ियां, धोती और कुर्ते का कपड़ा बनाकर बाजार में बेचते थे। उस समय कोसा कपड़े के खरीददार नहीं होते थे। कुछ सेठ-महाजन ही पूजा-पाठ के समय इसका उपयोग करते थे। कदाचित इसी कारण इसका ज्यादा प्रचलन नहीं था। चांपा से 14 कि. मी. की दूरी पर स्थित सारागांव के श्री बिसाहूदास महंत चांपा विधानसभा के पहले विधायक फिर मध्यप्रदेश शासन में केबिनेट मंत्री बने। चांपा की गलियों और घरों में कोसा कपड़ों को बनते उन्होंने देखा था। कुछ देवांगन (बुनकर) परिवार से उनका बहुत ही अच्छा सम्बंध था। वे अक्सर उन्हें कोसा व्यवसाय को अन्य शहरों में भी फैलाने की सलाह दिया करते थे। लेकिन बुनकर परिवार आर्थिक रूप से सक्षम नहीं थे और कोसा कपड़ा की बनावट उतना आकर्षक भी नहीं था जिसे वे अन्य शहरों में ले जाते ? हां कुछ लोग कोसा कपड़ा/धोती और साड़ी को पवित्र तथा पूजा-पाठ में प्रयुक्त होने वाला कपड़ा मानने के कारण चांपा से खरीदकर अवश्य ले जाते थे। लेकिन श्री बिसाहूदास महंत जी के सद्प्रयास से ही चांपा के कोसा व्यवसायी यहां के कोसा कपड़ों को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में ले जाने में सफल हो गये। इसके लिए मध्यप्रदेश शासन में टेक्टाइल कारपोरेशन की स्थापना भी करायी थी जिसके माध्यम से कोसा कपड़ों को बाजार मिला और यह पूरे देश में लोकप्रिय हो गया। यहां के व्यवसायी नवीनतम तकनीक को अपनाकर कोसा के कपड़ों को आकर्षक डिजाइनों में बाजार में प्रस्तुत किया जिसे लोगों ने बहुत पसंद किया। आज कोसा अनेक आकर्षक डिजाइनों में सिंथेटिक कपड़ों के समान चांपा के बाजार में मिलने लगा है। आज कोसा कपड़ा न केवल पूजा-पाठ के समय पहनने वाला कपड़ा रह गया है वरन अनेक अवसरों, आयोजनों में पहनने का कपड़ा हो गया है।
चांपा के बुनकर परिवार :-
आज चांपा में अपना देवांगन समाज है। जांजगीर-चांपा जिले के चांपा, सिवनी, उमरेली, सक्ती, बाराद्वार, ठठारी, बेलादुला, मालखरौदा, जांजगीर, बलौदा, आदि में देवांगन परिवार रहते हैं। केवल चांपा में ही लगभग एक हजार देवांगन (बुनकर) परिवार निवास करते हैं। इनमें से अधिकांश परिवार कोसा कपड़े का बुनकरी का कार्य करते हैं। यहां के हर गली-मुहल्ले में हाथ करघे की खट खट सुनने को मिल जायेगी। बुनकर लोग पान ठेला, सब्जी, दूध, गल्ला-किराना, सोने-चांदी और कपड़े आदि का व्यवसाय करने लगे हैं। ऐसे लोगों का कहना है कि इस व्यवसाय में उन्हें उतनी आमदनी नहीं होती जिससे उनके परिवार का गुजारा चल सके। कुछ लोग नौकरी भी करने लगे हैं और अच्छे पदों पर पदस्थ हैं। श्री संतोष कुमार देवांगन अनुविभागीय अधिकारी, राजस्व के पद पर पत्थलगांव में पदस्थ हैं। श्री छतराम देवांगन बलौदा विधानसभा के विधायक और छ. ग. शासन में संसदीय सचिव और श्री मोतीलाल देवांगन चांपा विधानसभा के विधायक हैं। श्री कमल देवांगन छत्तीसगढ़ राज्य हाथकरघा विकास एवं विपणन सहकारी संघ मर्यादित, रायपुर के अध्यक्ष हैं। कुछ लोग अपने पैतृक व्यवसाय के अलावा अन्य व्यवसाय को अपनाने लगे हैं। इसके बावजूद चांपा के कोसा कपड़ों की मांग अमरीका, यूरोप, जर्मनी, इटली, फ्रांस, चीन, नेपाल, कनाडा, इंग्लैंड और स्विटजरलैंड आदि में बहुतायत में हैं। कुछ व्यापारी यहां से सीधे कोसा के कपड़े सीधे विदेश भेजते हैं और कुछ दूसरे व्यापारी के माध्यम से भेजते हैं।
बदहाल बुनकर :-
इतने अच्छे कोसा के कपड़ों को बनाने वाले बुनकरों की हालत बहुत अच्छी नही है। रात दिन कड़ी मेहनत करने वाले बुनकर अपने परिवार के पेट की आग को शांत करने में अक्षम हैं। ऐसे एक बुनकर ने बताया कि रेशम संचालनालय के सिवनी कार्यालय से आम बुनकरों को कोसे का धागा नहीं मिल पाता क्योंकि वहां भी महाजनों का कब्जा है। मजबूरी में उन्हें महाजनों से धागा खरीदकर कपड़ा बुनना पड़ा है। पिछले साल सिवनी में पंद्रह लाख कोसा फल आया था लेकिन आम बुनकर को एक भी फल नहीं मिल पाया, उसे महाजन और उनके संपर्क में रहने वाले बुनकर खरीद लिए। दलालों के माध्यम से कोसा फल खरीदने पर उन्हें शासन की दर से तीन गुने अधिक दर में कोसा फल खरीदना पड़ता है। आज अधिकांश कोसे के व्यवसायी कोसा फल अथवा धागा वजन करके देता है और ग्राहकों की मांग के अनुरूप बुनकर कपड़े की बुनाई करके केवल मजदूरी पाता है। एक अन्य बुनकर ने बताया कि उन्हें पैंतीस मीटर कपड़े की मजदूरी सिर्फ सात सौ रूपये, एक शाल की बुनाई मात्र सत्तर रूपये, एक साड़ी की बुनाई सिर्फ ढाई सौ रूपये मिलता है। यही कपड़े राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चार से दस गुने अधिक दामों में बेचे जाते हैं।
कोसे की इल्लियां :-
शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय चांपा में टसर टेक्नालॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. अश्विनी केशरवानी ने बताया कि सामान्यतया कोसा की इल्लियां साल, सागौन, शहतूत और अर्जुन की पत्तियों को खाकर ककून बनाती हैं। ककून से धागा निकालकर कपड़े की बिनाई की जाती है। ये निम्न प्रकार के होते हैं :-
1- मलबरी कोसा :- यह छोटे आकार का मुलायम कोसा होता है। इसका रंग सफेद, पिला, केसरिया और हल्का पीला होता है।
2- तसर कोसा :- इसके रेशे का रंग भूरा, पीला, काला व सफेद होता है।
3- मूंगा कोसा :- यह मलबरी कोसे के समान होता है। इसके रेशे का रंग सुनहरा होता है। इसका सर्वाधिक उत्पादन आसाम में होता है। रंग के आधार पर इसे गोल्डन सिल्क भी कहा जाता है।
4- ऐरी कोसा :- इसका रंग पीला व सफेद होता है। इसका उत्पादन देश के पूर्वी प्रदेश आसाम, त्रिपुरा, मेघालय के अलावा उत्तरप्रदेश, में होता है।
5- पोली कोसा :- यह सामान्य आकार से बड़े व छोटे आकार में पाये जाते हैं। जब कोसा की तितली के द्वारा कोसा फल (ककून) बनाने के बाद वह उसे छेदकर बाहर निकल आती है जिससे ककून पोली हो जाती है। इसीलिए इसे पोली कोसा कहा जाता है।
6- रैली कोसा :- इसका रंग काला और आकार बड़ा होता है। इसके धागे को ही रैली धागा कहा जाता है। साल, महुवा आदि पेड़ों पर इसका उत्पादन किया जाता है।
7- मोमरा कोसा :- जिसमें कोसे का धागे कम मात्रा में और बड़ी मुश्किल से निकलता है उसे मोमरा कोसा कहते हैं।
कोसा और रोजगार :-
रोजगार की दृष्टि से कृषि के बाद हाथ करघा उद्योग को महत्वपूर्ण माना गया है। इससे रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की संख्या पूरे देश में लगभग दो करोड़ है। इसी प्रकार कुल राष्ट्रीय आय में हाथ करघा उद्योग का लगभग सात प्रतिशत होता है। पूरे देश में लगभग एक करोड़ हाथ करघा और पावर लूम हैं। इससे लगभग दो करोड़ व्यक्तियों को रोजगार प्राप्त है। पूरे छत्तीसगढ़ में रायगढ़, जशपुर, सरगुजा, कोरिया, जगदलपुर, बिलासपुर, कोरबा और जांजगीर-चांपा और पाली में ककून का उत्पादन होता है। कोसे के फल (ककून) से लगभग 1000 से 1200 मीटर धागा निकलता है। आजकल कोसे के धागे की जगह कोरिया से एक विशेष प्रकार के धागा जो कोसे के धागे के समान होता है, उपयोग किया जाता है।
सरकारी योजनाएं :-
राज्य और केंद्रीय शासन की ऐसी बहुत सी योजनाएं हैं जिनकी जानकारी सहकारी और स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम लोगों को देने का प्रावधान है लेकिन बुनकरों का कहना है कि ऐसा नहीं होता। जो उनके संपर्क में रहता है उन्हें ही इसकी जानकारी मिल पाती है। इसीलिए वे इस योजनाओं का लाभ नहीं ले पाते। ऐसी संस्थाओं में भी बड़े महाजनों और दलालों का कब्जा होता है। श्री कमल देवांगन, अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ राज्य हाथकरघा विकास एवं विपणन सहकारी संघ मर्यादित, रायपुर ने एक साक्षात्कार में बताया कि जांजगीर-चांपा जिला में 25 और पूरे प्रदेश में पहले केवल 80-85 बुनकर सहकारी समितियां विपणन संघ से जुड़ी थी लेकिन अभी 127 समितियां कार्यरत हैं। चांपा में पांच समिति क्रमश: तपसी बाबा कोसा बुनकर सहकारी समिति, जय अम्बे कोसा बुनकर सहकारी समिति, गंगा यमुना कोसा बुनकर सहकार समिति, कबीर कोसा बुनकर सहकारी समिति और जागृति कोसा बुनकर सहकारी समिति कार्यरत हें। इन समितियों के माध्यम से बुनकरों को शासन से मिलने वाली सुविधाएं बुनकरों को प्रदान की जाती हैं। उन्होंने बताया कि पूरे देश में चांपा से 5वीं, 8वीं, 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं में 60 से 90 प्रतिशत अंक पाने वाले विद्यार्थियों को माननीय डॉ. रमनसिंह के कर कमलों से पुरस्कार प्रदान किया जावेगा। प्रदेश का विपणन संघ न केवल कोसा बुनकर बल्कि सभी प्रकार के हाथकरघा बुनकरों के उत्थान के लिए प्रयास कर रही है। उनका प्रयास है कि प्रदेश का कोई भी बुनकर खाली न रहे।
कोसे की तकनीकी एवं शिक्षा देने वाली संस्थाएं :-
चांपा में हेंडलूम टेक्नालॉजी का एक राष्ट्रीय संस्थान खोला गया है। इसी प्रकार यहां के शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में बी. एस-सी. टसर टेक्नालॉजी और एड आन कोर्स के रूप में सेरीकल्चर विषय में सर्टिफिकेट कोर्स खोला गया है। इन संस्थानों एवं विषयों को खुलवाने में चांपा विधानसभा के विधायक श्री मोतीलाल देवांगन एवं मध्यप्रदेश शासन के पूर्व मंत्री श्री बलिहार सिंह का योगदान रहा है। निश्चित रूप से इन संस्थानों और विषयों के खुलने से न केवल चांपा बल्कि छत्तीसगढ़ प्रदेश के विद्यार्थियों को लाभ होगा। उन्हें डिग्री के साथ नई तकनालॉजी का ज्ञान होगा जिससे कोसा कपड़ों की बुनकरी में नयापन आयेगा।
कोसा व्यवसाय और पुरस्कार :-
देश के सिध्दहस्त बुनकरों को राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किये जाते हैं। खुशी की बात है कि छत्तीसगढ़ के लगभग एक दर्जन बुनकरों को राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। श्री सुखराम देवांगन को कोसा दुपट्टा बनाने की कला में उल्लेखनीय योगदान के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। इसके पूर्व श्री पूरनलाल देवांगन को 1993 में एवं उनके पुत्र श्री नीलांबर प्रसाद देवांगन को 2002 में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। कोसा कपड़े पर उत्कृष्ट डिजाइन के लिए श्री ओमप्रकाश देवांगन को मुख्य मंत्री डॉ. रमन सिंह ने एक लाख रूपये नगद, शील्ड और प्रशंसा पत्र देकर सम्मानित किया है।
बुनकरों के लिए क्या करें :-
बुनकरों के उत्थान के लिए निम्नलिखित कार्य किया जाना समीचीन होगा :-
1- छत्तीसगढ़ के हाथ करघा उद्योग के विकास एवं विस्तार हेतु देश के प्रमुख शहरों में विक्रय केंद्र (एम्पोरियम) खोला जाना चाहिए।
2- छत्तीसगढ़ में सूती एवं कोसा कपड़ों के निर्यात की अपार संभावनाएं हैं। इसे ध्यान में रखते हुए एक विकसित रंगाई, छपाई एवं प्रोसेसिंग इंस्टीटयूट खोला जाना चाहिए।
3- छत्तीसगढ़ के अधिकांश बुनकर आज भी अपने परंपरागत तरीके से बुनाई करते हैं जबकि आज के वैज्ञानिक युग में फिनिशिंग वर्क की मांग अधिक है। अत: यहां के बुनकरों के लिए उन्नत किस्म के उपकरणों की आवश्यकता है। समय समय पर बुनकरों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम रखा जाना चाहिए।
4- स्वदेशी और निर्यात बाजार में चांपा के कोसा और हाथ करघा वस्त्रों को नई तकनीक देने के लिए बुनकर सेवा संघ चांपा में स्थापित की जानी ताकि बुनकरों में कलस्तर तकनीक को विकसित किया जा सके।
5- केंद्रीय योजनाओं की सही जानकारी सर्व सुलभ कराते हुए उसके सफल क्रियान्वयन कर हाथ करघा उद्योग को अधिकाधिक रोजगारमूलक बनाया जाये।
6- हाथ करघा बुनकरों को यार्न की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु सूती हाथ करघा सघन क्षेत्र रायपुर में एन. एच. डी. सी. के सूती यार्न बैंक की स्थापना की जानी चाहिए।
7- छत्तीसगढ़ में निर्यात संभावनाओं को देखते हुए रायपुर में हैंडलूम एक्सपोर्ट प्रमोशन काऊंसिल कार्यालय शीघ्र की जानी चाहिये।
8- कोसा उत्पादों की बिक्री के लिए नियमित बाजार की आवश्यकता को देखते हुए रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़ और दुर्ग आदि शहरों में दिल्ली हाट के तर्ज पर छत्तीसगढ़ हाट की स्थापना की जानी चाहिये।
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रचना, आलेख, फोटो एवं प्रस्तुति,
प्रो. अश्विनी केशरवानी
राघव, डागा कालोनी, चांपा (छ.ग.)
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