शुक्रवार, 23 नवंबर 2007

छत्तीसगढ़ के मेला और मड़ई

छत्तीसगढ़ के मेला और मड़ई

प्रो.अश्विनी केशरवानी
इतिहास इस बात का साक्षी है कि छत्तीसगढ़ की भूमि आदि काल से ही अपनी परंपरा, समर्पण की भावना, सरलता और कला एवं संस्कृति की विपुलता के कारण पूरे देश के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यहाँ के लोगों का भोलापन, यहाँ के शासकों की वचनबध्दता और प्रकृति के दुलार का ही परिणाम है कि यहाँ के लोग सुख को तो आपस में बाँटने ही हैं, दुख में भी विचलित न होकर हर समय एक उत्सव का सा माहौल बनाए रखते हैं। किसी प्रकार का दबाब उनकी उत्सवप्रियता में कमी नहीं ला पाता। झुलसती गर्मी में इनके चौपाल गुंजित होते हैं, मुसलाधार बारिश में इनके खेत गमकते हैं तथा कड़कड़ाती ठंड में इनके खलिहान झूमते हैं। 'धान का कटोरा' कहे जाने वाले इस क्षेत्र के लोगों के रग रग में पायी जाने वाली उत्सवप्रियता, सहजता और वचनबध्दता को वे कई तरीकों से प्रकट करते हैं। मड़ई और मेला इनमें प्रमुख है। देव स्थानों और तीर्थ नगरों में जहाँ मेला लगता है वहीं गाँवों में 'साजू' से सजे रावतों की टोली के साथ विभिन्न ग्राम देवों की पताका लिए मड़ई का जुलूस निकलता है तो उनकी मिल जुलकर रहने की प्रवृत्ति और उनकी सांस्कृतिक भव्यता का इंद्रधनुषी माहौल किसी को सम्मोहित कर देने के लिए पर्याप्त होता है। मेला की तिथि जहाँ निश्चित होती है वहीं मड़ई अलग अलग गाँवों में अलग अलग तिथियों में होती है। अपवाद स्वरूप कुछ गाँवों में बहुत सालों से एक ही तिथि में मड़ई का आयोजन होता है। आइये इन्हें जानें :-

माघ पूर्णिमा को लगने वाले मेला :-
छत्तीसगढ़ में माघ पूर्णिमा को एक साथ कई स्थानों में लगता है। इनमें शिवरीनारायण, राजिम, सिरपुर, रतनपुर, सेतगंगा, बेलपान, सेमरसल, कुदुरमाल, रूद्री और सिहावा प्रमुख है।

शिवरीनारायण :-
जांजगीर-चांपा जिलान्तर्गत जांजगीर से 65 कि.मी., बिलासपुर से 64 कि.मी. पर स्थित छत्तीसगढ़ का प्रमुख सांस्कृतिक और धार्मिक नगर शिवरीनारायण महानदी, जोंक और शिवनाथ नदी के संगम पर स्थित है। इसे 'गुप्त प्रयाग' भी कहा जाता है। यहाँ भगवान नारायण, भगवान जगन्नाथ, श्रीराम लक्ष्मण और जानकी, लक्ष्मीनारायण, अन्नपूर्णा, राधाकृष्ण, काली, हनुमान जी, चंद्रचूड़ और महेश्वर महादेव, शीतला माता का भव्य मंदिर दर्शनीय है। भगवान नारायण के चरण को स्पर्श करती 'रोहणी कुंड' स्थित है। इसका दर्शन, आचमन मोक्षदायी है। यहाँ का रथयात्रा जगन्नाथ पुरी जैसा ही दर्शनीय है। प्रतिवर्ष यहाँ माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक मेला लगता है जिसे 'छत्तीसगढ़ का महाकुंभ' कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि माघ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ पुरी से यहाँ आकर विराजते हैं। इस दिन उनका दर्शन मोक्षदायी होता है। सन् 1861 से 1891 तक यह तहसील मुख्यालय था जिसके तहसीलदार सुपसिध्द साहित्यकार ठाकुर जगमोहनसिंह थे। उस काल में यहाँ भारतेन्दु युगीन अनेक साहित्यकार यहाँ साहित्यिक साधना करने आते थे। उस काल में यह छत्तीसगढ़ का साहित्यिक तीर्थ बन गया था।

राजिम :-
रायपुर से 48 कि.मी. दक्षिण पूर्व में महानदी, पैरी और सोढुल नदी के संगम में स्थित राजिम को 'छत्तीसगढ़ का प्रयाग' कहा जाता है। प्राचीन काल में इस नगर को पदमपुर कहा जाता था। यहाँ भगवान राजीव लोचन, श्रीराम लक्ष्मण और जानकी, साक्षी गोपाल, राजिम तेलिन और कुलेश्वर महादेव का मंदिर महानदी के बीच में है। शिवरीनारायण में भगवान नारायण का दर्शन करने के बाद राजिम में साक्षी गोपाल का दर्शन जरूरी है अन्यथा दर्शन अधूरी मानी जाती है। प्रतिवर्ष यहाँ माघ पूर्णिमा से 15 दिवसीय मेला भरता है। कुछ वर्षों से पर्यटन विभाग द्वारा राजिम महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। महाशिवरात्रि में भी यहाँ दर्शनार्थियों की भीड़ होती है।

सिरपुर :-
नवगठित महासमुंद जिलान्तर्गत रायपुर से 83 कि.मी., राजिम से 65 कि.मी., और आरंग से 24 कि.मी. दूर महानदी की पूर्वी तट पर सिरपुर स्थित है। यहाँ 5वीं से 8वीं शताब्दी के मध्य दक्षिण कोशल की राजधानी थी। 9वीं से 10वीं शताब्दी के मध्य यह बौध्द धर्म का एक प्रमुख केंद्र था। 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री व्हेनसांग यहाँ आये थे। यहाँ ईंटों से निर्मित लक्ष्मण मंदिर, श्रीराम का भग्न मंदिर और बौध्द विहार दर्शनीय है। इसके अलावा गंधेश्वर महादेव, राधाकृष्ण, चंडी मंदिर और खुदाई से प्राप्त संग्रहालय में रखी प्रतिमाएं दर्शनीय है। यहाँ भी माघ पूर्णिमा एवं महाशिवरात्रि को एक दिवसीय मेला लगता है।

रतनपुर :-
बिलासपुर से 21 कि.मी. की दूरी पर हैहयवंशी कलचुरी राजाओं की प्राचीन वैभवशाली राजधानी रत्नपुर थी। मराठा राजाओं ने भी यहाँ शासन किया है। इसे छत्तीसगढ़ का प्रमुख शक्ति पीठ कहा जाता है। यहाँ महामाया देवी की भव्य मूर्ति दर्शनीय है। इसके अलावा भैरव बाबा, रामटेकरी में श्रीराम जानकी मंदिर, बूढेश्वर महादेव, जगन्नाथ मंदिर, किले का भग्नावशेष, कंठीदेवल मंदिर और बीस दुवरिया दर्शनीय है। यहाँ से 5 कि.मी. दूरी पर कटघोरा रोड में खूँटाघाट जलाशय है। यहाँ माघ पूर्णिमा से 15 दिवसीय मेला लगता है। दोनों नवरात्रि में दर्शनार्थियों की अपार भीड़ होती है। यहाँ बस और टैक्सी से जाया जा सकता है।

सेतगंगा :-
मुंगेली से 17 कि.मी. पर पंडरिया मार्ग में एक छोटा सा नगर सेतगंगा टेसुवा नाला के तट पर स्थित है। यहाँ रामजानकी का भव्य मंदिर है जिसके गर्भगृह में अनेक देवताओं की मूर्ति है और द्वार पर रावण की मूर्ति है। मंदिर के बाहर मिथुन मूर्तियाँ हैं। यहाँ के कुंड को नर्मदा कुंड कहा जाता है। यहाँ प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को तीन दिवसीय मेला लगता है। यहाँ देवताओं की सभा का दृश्य दर्शनीय है।

बेलपान :-
बिलासपुर जिलान्तर्गत बिलासपुर से 30 कि.मी. और तखतपुर से 12 कि.मी. की दूरी पर शिवजी का एक प्रसिध्द मंदिर है। यहाँ इस कुंड से छोटी नर्मदा नदी का उद्गम हुआ है जो आगे जाकर मनियारी नदी में मिल जाती है। इस नदी में अस्थि विसर्जित की जाती है। यहाँ एक प्रसिध्द शिव मंदिर है जिसका निर्माण सन 1757 से 1786 मे बीच बिम्बा जी भोसले ने कराया। यहाँ प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को सात दिवसीय मेला लगता है।

रूद्री और सिहावा :-
रायपुर से 155 कि. मी. एवं धमतरी से 65 कि.मी. पर सिहावा स्थित है। धमतरी जिलान्तर्गत रूद्री में रूद्रेश्वर महादेव और सिहावा में कर्णेश्वर महादेव का मंदिर है। महानदी का उद्गम स्थल सिहावा है जहाँ प्राचीन काल में श्रृंगी ऋषि का आश्रम था। माघ पूर्णिमा को यहाँ मेला लगता है और महाशिवरात्रि को यहाँ दर्शनार्थियों की खूब भीड़ होती है।

कुदुरमाल :-
कोरबा जिलान्तर्गत उरगा से दो कि.मी. पर कबीर पंथियों का तीर्थ स्थल कुदुरमाल है यहाँ कबीर पंथ के धर्म गुरूओं की समाधि है। प्रतिवर्ष यहाँ माघ पूर्णिमा को मेला लगता है और संत समागम होता है।

महाशिरात्रि को लगने वाला मेला :- छत्तीसगढ़ में शैव परंपरा के द्योतक अन्यान्य शिव मंदिर हैं जहाँ सावन मास में श्रावणी और महाशिवरात्रि में मेला लगता है। इन मंदिरों में खरौद के लक्ष्मणेश्वर महादेव, राजिम का कुलेश्वर महादेव, शिवरीनारायण का चंद्रचूढ़ और महेश्वर महादेव, कनकी का कनकेश्वर महादेव, रूद्री का रूद्रेश्वर और सिहावा का कर्णेश्वर महादेव, नवागढ़ का लिंग्वा महादेव, पीथमपुर का कालेश्वर महादेव, मल्हार का पातालेश्वर महादेव, सिरपुर का गंधेश्वर महादेव, जांजगीर में सेंधवार महादेव, पाली, चांटीडीह और महादेवघाट (रायपुर) में एक दिवसीय मेला लगता है।

पीथमपुर मेला :- जांजगीर-चांपा जिलान्तर्गत चांपा से 8 कि.मी. और जांजगीर से 13 कि.मी. की दूरी पर हसदेव नदी के तट पर पीथमपुर स्थित है। यहाँ कालेश्वर महादेव का प्रसिध्द मंदिर है जिसके दर्शन और पूजा अर्चना से पेट रोग से जहाँ मुक्ति मिलती है वहीं वंश-वृध्दि का आशीर्वाद भी मिलता है। प्रतिवर्ष यहाँ फाल्गुन प्रतिपदा (होली के दूसरे दिन) से 15 दिवसीय मेला लगता है। धूल पंचमी के दिन यहाँ शिवजी की परंपरागत बरात निकलती है जिसमें सम्मिलित होने के लिए नाबा साधु यहाँ आते हैं।

श्रावण मेला :- श्रावण मास में तुर्री, कनकी, खरौद और परसाही में मेला लगता है।

कुटी घाट मेला :-
बिलासपुर-शिवरीनारायण मार्ग पर लीलागर नदी के तट पर भगवान श्रीरामचंद्र जी कुटिया बनाकर कुछ दिन विश्राम किये थे उन्हीं की स्मृति में यहाँ 26 जनवरी को तीन दिवसीय मेला लगता है जो छत्तीसगढ़ का प्रथम मेला होता है।

मालखरौदा का ईसाई मेला :-
जांजगीर-चांपा जिलान्तर्गत मालखरौदा ब्लाक मुख्यालय में छत्तीसगढ़ का बहुत पुराना चर्च है जहाँ प्रतिवर्ष 25 दिसंबर से एक सप्ताह का मेला लगता है।

रामनामी मेला :-
पौष एकादशी से त्रयोदशी तक चलने वाला तीन दिवसीय प्रसिध्द रामनामी मेला प्रतिवर्ष एक बार महानदी के इस पार और दूसरे साल महानदी के उस पार लगता है। इस मेले में रामनामी भजन, संत समागम और वैवाहिक रस्म होते हैं।

तुरतुरिया मेला :-
रायपुर जिलान्तर्गत कसडोल विकास खंड के ग्राम तुरतुरिया में पौष पूर्णिमा (छेरछेरा) को एक दिवसीय मेला लगता है। प्राचीन काल में यहाँ बाल्मिकी आश्रम था जहाँ लव और कुश का जन्म हुआ था। यहाँ बौध्द विहार ही है।

डभरा का रात्रिकालीन मेला :-
जांजगीर-चांपा जिलान्तर्गत डभरा विकास खंड मुख्यालय में प्रसिध्द श्री चक्रधारी मंदिर में प्रतिवर्ष रामनवमीं को सात दिवसीय रात्रिकालीन मेला लगता है।

गिरौदपुरी का भजन मेला :-
सतनाम के प्रवर्तक गुरू घासीदास की जन्म स्थली गिरौदपुरी में प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ल पंचमी से सप्तमी तक तीन दिवसीय मेला लगता है। इस मेला में पंथ के अनुयायियों के द्वारा 'खड़ाऊ पूजा' की जाती है। इसी प्रकार दशहरा के दिन भंडारा और तेलासी में ध्वजारोहण और गुरू पूजा की जाती है।

रायगढ़ का जन्माष्टमी मेला :-
रायगढ़ जिला मुख्यालय में प्रसिध्द गौरीशंकर मंदिर में प्रतिवर्ष जन्माष्टमी मेला का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर मंदिर परिसर में आकर्षक झांकियाँ लगायी जाती है। दर्शनार्थियों की अपार भीड़ होती है। अनुक मनोरंजन के साधन और दुकानें लगाई जाती है। रायगढ़ आजादी के पूर्व एक फ्यूडेटरी स्टेट्स था। तब यहाँ गणेश मेला लगता था जिसमें अनेक कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करके पुरस्कृत होते थे। वर्षों से यहाँ चक्रधर समारोह आयोजित किया जा रहा है।

सिवनी (नैला) में संतोषी मेला :-
जांजगीर-चांपा जिला मुख्यालय से लगे गांव सिवनी में सा दिवसीय संतोषी मेला लगता है।

लुथरा शरीफ मेला :-
बिलासपुर से बलौदा मार्ग में बिलासपुर से 32 कि.मी. पर लुथरा शरीफ है जहाँ मुस्लिम संत हजरत बाबा सैय्यद इंसान की दरगाह है। यहाँ हजारों-लाखों दर्शनार्थी मत्था टेकने और चादर चढ़ाने आते हैं। इससे उनकी मुराद पूरी होती है।

करगी रोड का कोटेश्वर मेला :-
बिलासपुर जिला मुख्यालय से बिलासपुर-कटनी रेल्वे मार्ग में 32 कि.मी. तथा बिलासपुर-लोरमी सड़क मार्ग में 35 कि.मी. पर स्थित करगीरोड (कोटा) में सागर तालाब के पास स्थित प्रसिध्द कोटेश्वर महादेव मंदिर के पास महाशिवरात्रि के दिन कोटेश्वर मेला लगता है।

मड़वारानी मेला :-
चांपा-कोरबा मार्ग में स्थित मड़वारानी की पहाड़ी में दशहरा के बाद तीन दिवसीय मेला लगता है।

श्याम कार्तिक मेला :-
जांजगीर-चांपा जिलान्तर्गत जांजगीर से पांच कि.मी. पर स्थित ग्राम सरखों में कार्तिक शुक्ल छट से कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा तक 10 दिवसीय श्याम कार्तिक की मर्ति स्थापित कर पूजा अर्चना की जाती है। विसर्जन के दिन एक दिवसीय मेला लगता है।

नवरात्रि मेला :-
छत्तीसगढ़ में शाक्त परंपरा के द्योतक अनेक देवियों का मंदिर है जहाँ दर्शनार्थियों की अपार भीड़ होती है। लेकिन डोंगरगढ़, चंद्रपुर, खोखरा, चैतुरगढ़ और रतनपुर में मेला लगता है।

नाग नथाई मेला :-
छत्तीसगढ़ के अन्यान्य गाँवों में वसंत की शुरूवात में रामलीला, कृष्णलीला और नाटकों का मंचन किया जाता है। अंतिम दिन तालाब में नाग नाथने का मंचन किया जाता है जिसे देखने के लिए हजारों एकत्रित होते हैं।

भटगांव मेला :&
रायपुर जिलाऔर बिलाईगढ़ तहसील के अन्तर्गत भटगांव से 06 कि.मी. पर जंगल में स्थित भटगांव जमींदार परिवार की कुलदेवी जेवरा दाई की मंदिर में चैत्र पूर्णिमा को विशेष पूजा अर्चना की जाती है। मानता मानने वाले जमीन में लोट मारते यहाँ आते हैं और बलि देकर मानता पूरा करते हैं। फिर भटगांव में 10 दिवसीय मेला लगता है।

सरसीवां मेला :-
रायपुर जिला के अंतिम छोर में सरसीवां नगर स्थित है। यहाँ से तीन कि.मी. पर महानदी के तट पर रामनामियों का तीर्थ उड़काकन स्थित है। दो हजार की आबादी वाले इस गांव में श्रीराम का मूर्ति विहीन मंदिर है जहाँ केवल राम नाम का अंकन है। यहाँ रामनवमी को विशेष पूजा अर्चना की जाती है। तत्पश्चात् सरसीवां में 10 दिवसीय मेला लगता है।
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