बुधवार, 20 फ़रवरी 2008




िशवरीनारायण का मेला
प्रो. अिश्वनी केशरवानी
महानदी के तट पर स्थित प्राचीन, प्राकृतिक छटा से सुसज्जित और छत्तीसगढ़ की संस्कारधानी के नाम से विख्यात् शिवरीनारायण, जांजगीर-चांपा जिलान्तर्गत जांजगीर से 60 कि. मी., बिलासपुर से 64 कि. मी., कोरबा से 110 कि. मी., रायगढ़ से व्हाया सारंगढ़ 110 कि. मी. और राजधानी रायपुर से व्हाया बलौदाबाजार 120 कि. मी. की दूरी पर स्थित है। यह नगर कलचुरि कालीन मूर्तिकला से सुसज्जित है। यहां महानदी, शिवनाथ और जोंक नदी का त्रिधारा संगम प्राकृतिक सौंदर्य का अनूठा नमूना है। इसीलिए इसे ``प्रयाग`` जैसी मान्यता है। मैकल पर्वत श्रृंखला की तलहटी में अपने अप्रतिम सौंदर्य के कारण और चतुभुZजी विष्णु मूर्तियों की अधिकता के कारण स्कंद पुराण में इसे ``श्री नारायण क्षेत्र`` और ``श्री पुरूषोत्तम क्षेत्र`` कहा गया है। प्रतिवर्ष माघ पूणिZमा से यहां एक बृहद मेला का आयोजन होता है, जो महाशिवरात्री तक लगता है। इस मेले में हजारों-लाखों दर्शनार्थी भगवान नारायण के दर्शन करने जमीन में ``लोट मारते`` आते हैं। ऐसी मान्यता है कि माघ पूणिZमा को भगवान जगन्नाथ यहां विराजते हैं और पुरी के भगवान जगन्नाथ के मंदिर का कपाट बंद रहता है। इस दिन उनका दर्शन मोक्षदायी होता है। तत्कालीन साहित्य में जिस नीलमाधव को पुरी ले जाकर भगवान जगन्नाथ के रूप में स्थापित किया गया है, उसे इसी शबरीनारायण-सिंदूरगिरि क्षेत्र से पुरी ले जाने का उल्लेख 14 वीं शताब्दी के उिड़या कवि सरलादास ने किया है। इसी कारण शिवरीनारायण को छत्तीसगढ़ का जगन्नाथ पुरी कहा जाता है और शिवरीनारायण दर्शन के बाद राजिम का दर्शन करना आवश्यक माना गया है क्योंकि राजिम में ´´साक्षी गोपाल`` विराजमान हैं। छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा मेला होने के कारण यहां के मेले को ``छत्तीसगढ़ का कुंभ`` कहा जाता है।
छत्तीसगढ़ में िशवरीनारायण के मेला का विशेष महत्व है। क्यों कि यहां का मेला अन्य मेला की तरह बेतरतीब नहीं बल्कि पूरी तरह से व्यवस्थित होता है। दुकान की अलग अलग लाईनें होती हैं। एक लाईन फल दुकान की, दूसरी लाइन बर्तन दुकानों की, तीसरी लाइन मनिहारी दुकानों की, चौथी लाइन रजाई-गद्दों की, पांचवीं लाइन सोने-चांदी के जेवरों की होती है। इसी प्रकार एक लाईन होटलों की, एक लाइन सिनेमा-सर्कस की, एक लाइन कृषि उपकरणों, जूता-चप्पलों की दुकानें आदि होती है। इस मेले में दुकानदार अच्छी खासी कमाई कर लेता है।
नगर के पिश्चम में महंतपारा की अमराई में और उससे लगे मैदान में माघ पूणिZमा से महािशवरात्री तक प्रतिवषZ मेला लगता है। माघ पूणिZमा की पूर्व रात्रि में यहां भजन-कीर्तन, रामलीला, गम्मत, और नाच-गाना करके दशZनार्थियों का मनोरंजन किया जाता है और प्रात: तीन-चार बजे चित्रोत्पलागंगा-महानदी में स्नान करके भगवान शबरीनारायण के दशZन के लिए लाइन लगायी जाती है। दशZनार्थियों की लाइन मंदिर से साव घाट तक लगता था। भगवान शबरीनारायण की आरती के बाद मंदिर का द्वार दशZनार्थियों के लिए खोल दिया जाता है। इस दिन भगवान शबरीनारायण का दशZन मोक्षदायी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ इस दिन पुरी से आकर यहां सशरीर विराजते हैं। कदाचित् इसी कारण दूर दूर से लोग यहां चित्रोत्पलागंगा-महानदी में स्नान कर भगवान शबरीनारायण का दशZन करने आते है। बड़ी मात्रा में लोग जमीन में ``लोट मारते`` यहां आते हैं। मंदिर के आसपास और माखन साव घाट तक ब्राह्मणों द्वारा श्री सत्यनारायण जी की कथा-पूजा कराया जाता था। रमरमिहा लोगों के द्वारा विशेष राम नाम कीर्तन होता था। िशवरीनारायण में मेला लगने की शुरूवात कब हुई इसकी लिखित में जानकारी नहीं है लेकिन प्राचीन काल से माघी पूणिZमा को भगवान शबरीनारायण के दशZन करने हजारों लोग यहां आते थेण्ण्ण्और जहां हजारों लोगों की भीढ़ हो वहां चार दुकानें अवश्य लग जाती है, कुछ मनोरंजन के साधन-सिनेमा, सर्कस, झूला, मौत का कुंआ, पुतरी घर आदि आ जाते हैं। यहां भी ऐसा ही हुआ होगा। लेकिन इसे मेला के रूप में व्यवस्थित रूप महंत गौतमदास जी की प्रेरणा से हुई। मेला को वर्तमान व्यवस्थित रूप प्रदान करने में महंत लालदास जी का बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने मठ के मुिख्तयार पंडित कौशलप्रसाद तिवारी की मद्द से अमराई में सीमेंट की दुकानें बनवायी और मेला को व्यवस्थित रूप प्रदान कराया। पंडित रामचंद्र भोगहा ने भी भोगहापारा में सीमेंट की दुकानें बनवायी और मेला को महंतपारा की अमराई से भोगहापारा तक विस्तार कराया। चूंकि यहां का प्रमुख बाजार भोगहापारा में लगता था अत: भोगहा जी को बाजार के कर वसूली का अधिकार अंग्रेज सरकार द्वारा प्रदान किया गया था। आजादी के बाद मेला की व्यवस्था और कर वसूली का दायित्व जनपद पंचायत जांजगीर को सौंपा गया था। जबसे िशवरीनारायण नगर पंचायत बना है तब से मेले की व्यवस्था और कर वसूली नगर पंचायत करती है। नगर की सेवा समितियों और मठ की ओर से दशZनार्थियों के रहने, खाने-पीने आदि की नि:शुल्क व्यवस्था की जाती है।
आजादी के पूर्व अंग्रेज सरकार द्वारा गजेटियर प्रकािशत कराया गया जिसमें मध्यप्रदेश के जिलों की सम्पूर्ण जानकारी होती थी। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ फ्यूडेटरी इस्टेट प्रकािशत कराया गया जिसमें छत्तीसगढ़ के रियासतों, जमींदारी और दशZनीय स्थलों की जानकारी थी। आजादी के पश्चात सन 1961 की जनगरणा हुई और मध्यप्रदेश के मेला और मड़ई की जानकारी एकत्रित करके इम्पीरियल गजेटियर के रूप में प्रकािशत किया गया था। इसमें छत्तीसगढ़ के छ: जिलों क्रमश: रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, रायगढ़, सरगुजा, बस्तर के मेला, मड़ई, पर्व और त्योहारों की जानकारी प्रकािशत की गयी है। इसके अनुसार छत्तीसगढ़ में िशवरीनारायण, राजिम और पीथमपुर का मेला 100 वषZ से अधिक वषोZ से लगने तथा यहां के मेला में एक लाख दशZनार्थियों के शामिल होने का उल्लेख है।
यहां के मेला में वैवाहिक खरीददारी अधिक होती थी। बर्तन, रजाई-गद्दा, पेटी, सिल-लोढ़ा, झारा, डुवा, कपड़ा आदि की अच्छी खरीददारी की जाती थी। मेला में अकलतरा और िशवरीनारायण के साव स्टोर का मनिहारी दुकान, दुर्ग, धमधा, बलौदाबाजार, चांपा, बहम्नीडीह और रायपुर का बर्तन दुकान, बिलासपुर का रजाई-गद्दे की दुकान, कलकत्ता का पेटी दुकान, चुड़ी-टिकली की दुकानें, सोने-चांदी के जेवरों की दुकानें, नैला के रमाशंकर गुप्ता का होटल और उसके बगल में गुपचुप दुकान, अकलतरा और सक्ती का सिनेमा घर, किसिम किसिम के झूला, मौत का कुंआ, नाटक मंडली, जादू, तथा उड़ीसा का मिट्टी की मूर्तियों की प्रदिशZनी-पुतरी घर बहुत प्रसिद्ध था। यहां उिड़या संस्कृति को पोषित करने वाला सुस्वादिष्ट उखरा बहुतायत में आज भी बिकने आता है।
िशवरीनारायण और आस पास के गांवों में मेला के अवसर पर मेहमानों की अपार भीढ़ होती है। इस अवसर पर विशेष रूप से बहू-बेटियों को लिवा लाने की प्रथा है। शाम होते ही घर की महिलाएं झुंड के झुंड खरीददारी के निकल पड़ती हैं। खरीददारी के साथ साथ वे होटलों और चाट दुकानों में अवश्य जाती हैं और सिनेमा देखना नहीं भूलतीं। मेला में वैवाहिक खरीददारी अवश्य होती है। शासन दशZनार्थियों की सुविधा के लिए पुलिस थाना, विभिन्न शासकीय प्रदिशZनी, पीने के पानी की व्यवस्था आदि करती है। लोग चित्रोत्पलागंगा में स्नान कर, भगवान शबरीनारायण का दशZन करने, श्री सत्यनारायण की कथा-पूजा करवाने और मंदिर में ध्वजा चढ़ाने से लेकर विभिन्न मनोरंजन का लुत्फ उठाने और खरीददारी कर प्रफुिल्लत मन से घर वापस लौटते हैं। यानी एक पंथ दो काज ... तीर्थ यात्रा के साथ साथ मनोरंजन और खरीददारी। लोग मेले की तैयारी एक माह पूर्व से करते हैं। यहां के मेला के बारे में पंडित शुकलाल पांडेय `छत्तीसगढ़ गौरव` में लिखते हैं :-
पावन मेले यथा चंद्र किरण्ों, सज्जन उर।अति पवित्र त्यों क्षेत्र यहां राजिम, शौरिपुर।शोभित हैं प्रत्यक्ष यहां भगवन्नारायण।दशZन कर कामना पूर्ण करते दशZकगण।मरे यहां पातकी मनुज भी हो जाते धुव मुक्त कहते, युग क्षेत्र ये अतिशय महिमायुक्त हैं।।
प्रस्तुति,
प्रो. अिश्वनी केशरवानीराघव,
डागा कालोनी,चांपा-495671 (छ.ग.)



सोमवार, 18 फ़रवरी 2008

राजेश कुमार सोनार के बिखरे मोती



राजेश कुमार सोनार के बिखरे मोती

स्वागत 2008
नया वषZ तेरा स्वागत है ,दो हजार सन् आठ ,

आशा है तू नित लायेगा खुिशयो की सौगात ,
सात सुरों का संगम होगा तेरे इस नव गीत में ,

साथ निभायेगा जो हर पल आने वाली जीत में ,

सदा सफलता हमें मिलेगी दिन हो या हो रात...
सात रंग के हैं जो सपने उसे करोगे तुम साकार ,

हमें दिलाओगे गैरों से भी अपनों जैसा ही प्यार ,

सपनो को सच करने में ना कभी मिलेगी मात...
सातों दिन खुिशयों के होंगे अब पूरे सप्ताह मे ,

साथ सफलतायें होंगी अब अपने बारह माह में,

बात सिर्फ खुिशयों की होगी गम की ना हो बात ...
रखे कामना बस यह तुमसे है सोनार राजेश ,

सभी रहें समृद्ध ,स्वस्थ और करे प्रगति यह देश ,

गर्व कर सकें हम अपने पर बने वही हालात...
मुदित मन
मुदित हुआ करता है मानव मन,

मिले कहीं जब मन को स्पन्दन...

तितली जब इठलाती है , फूलों पर मंडराती है ,

खग अपनी कलरव से सारे , अम्बर को चहकाती हैं,

और भ्रमर करते गुन गुन गुंजन ,

मुदित हुआ करता है मानव मन ,

देख सुमन से सजा हुआ आंगन

कुसुम कली मुसकाती हैं , भ्रमरों को ललचाती हैं ,

फिर बिखेर अपनी सुरभि , बगिया को महकाती हैं,

महक उठा करता सारा उपवन ,

मुदित हुआ करता है मानव मन,

देख कुसुम का ऐसा अल्हड़पन

लिपटी तना लताओं से, जैसे बच्चे मांओं से ,

आम वृक्ष बौराते है , कोयल कूक के गाते हैं ,

तब सब कुछ लगता है मनभावन,

मुदित हुआ करता है मानव मन ,

दिखे दृश्य ऐसा जब भी अनुपम ...

घर में जब होते बच्चे, तब ही घर लगते अच्छे ,

बच्चे नटखट लगतेे हों , पर दिल के होते सच्चे ,

देख के बच्चों का निश्छल जीवन ,

मुदित हुआ करता है मानव मन ,

बच्चों से जब सजा दिखे आंगन,

मात-पिता , दादा-दादी, चाचा-चाची संग, बेटे ,

बिटिया और बहन , बांटें संग उमंग ,

करें जान इक दूजे पर अर्पण,

मुदित हुआ करता है मानव मन ,

दिखे घरों में जब भी अपनापन ...

मंदिर, मिस्जद ,गुरुद्वारा, हो या गिरजाघर ,

गूंजा करते नित्य जहां , आस्थाओं के स्वर,

पूजा में जब दिखता कोई मगन ,

मुदित हुआ करता है मानव मन,

दिखे भावना जब कोई पावन ...

जननी और अवनि दोनों, जीवनदाता हैं ,

इसीलिये दिल का इनसे , गहरा नाता है ,

इनसे मिलता दिल को स्पन्दन,

मुदित हुआ करता है मानव मन ...

इनसे जब जब उपजें नव जीवन ...

चिराग के दो रूप
घर के चिराग से ही रोशन हुआ है घर ये,

मुस्कान से भरे अब लगते मेरे अधर ये ,

आने से उसके घर में गौरव बढ़ा हमारा,

रखकर चलें शहर में ऊंचा अब अपना सर ये ,
उसने दिलाईं खुिशयां हमको जहां की सारी,

पा ली हैं सारी खुिशयां हमने इसी उमर में ,
मन हो रहा प्रफुिल्लत पाकर के साथ उसका ,

खुिशयों से हो रहा है पुलकित हमारा स्वर ये,
थे ख्वाब जो हमारे पूरे हुये सभी अब ,

स्ंातुिष्ट पा गये हम जीवन के इस पहर में ,
लोगों ने दी बधाई पाया जो कुल का दीपक,

मुक्ति मिलेगी हमको जीवन मरण के डर से ,
घर के चिराग से ही लगी आग अपने घर में ,

बदनाम लग रहे हम अब अपने ही शहर में ,
फूलो सा जिसको पाला जीवन में कष्ट सहकर,

कांटे बिखेर डाले उसने हर इक डगर में ,
सोचा था साथ देगा जीवन के सांझ तक जो ,

छोड़ा उसी ने हमको मंझधार में भंवर में ,
पाईं थी जिन्दगी में उपलब्धि जिस जमीं पर ,

वह ही लगी है चुभने मुझको मेरी नज़र में ,

सोना खरा ना खुद का तो दोष हम किसे दें,

माना खरा था जिसको खोटा है हर नज़र में ,
है वक्त से ही आशा उपचार वह करेगा ,

आशा से ही रखा है अब पग नये सफर में,

भारतीय सैनिक
वन्दे मातरम् ,वन्दे मातरम् ...

बाधायें कैसी भी हो पर रूकते जिसके नहीं कदम ,

होठों पर बस एक गीत रहता है वन्दे मातरम् ,

देशभक्ति की जो पहली पहचान ,

वो है हिन्दुस्तानी सेना का जवान ...
आंधी हो ,तूफान हो , फंसी किसी की जान हो ,

सागर की गहराई हो , या फिर गहरी खाई हो ,

रूका नहीं करता जिसका अभियान ,

वो है हिन्दुस्तानी सेना का जवान ...

सीमा उच्च हिमालय की हो ,या फिर राजस्थान की ,

सदा रहे रक्षा में रत जो भारत के सम्मान की ,

रखे तिरंगे की ऊंची जो शान , वो है हिन्दुस्तानी सेना का जवान ...

होता कहीं विवाद हो , दंगा और फसाद हो ,

तन्मयता से रक्षा करता , कैसा भी उन्माद हो ,

हिन्दू ,सिख हो या वह मुसलमान ,

वो है हिन्दुस्तानी सेना का जवान ...

गमीZ हो या सदीZ हो , या मौसम बेददीZ हो ,

कर्तव्यों से नहीं डिगे वह, जब तक तन पर वदीZ हो ,

चाहे उसकी निकल ही जाये जान ,

वो है हिन्दुस्तानी सेना का जवान ...

वन्दे मातरम् , वन्दे मातरम् ...
आशीष

गणपति से आशीष ले करो नई शुरूआत ,

खुिशयों से भरपूर हों अब सारे दिन रात ,
प्रीति बनी राजीव के जीवन की हमराह ,

मिले सदा आशीष बड़ों का रखकर दिल में चाह ,
प्रीति और राजीव रहें खुिशयों से आबाद ,

देते हैं हम आज यह इनको आशीर्वाद ,
जीवन भर मुस्कान का पावें दोनो साथ ,

जीवन के हर दौर में कभी ना छूूटे हाथ ,
खुिशयां जीवन भर मिलें और प्यार भरपूर ,

मिलकर दोनों ही करें सब बाधायें दूर ,
आशा और प्रताप पुत्र को है ऐसा आशीष ,

खुिशयों की इन पर हुआ नित्य करे बारिश ,
चाहत ना कम हो कभी ,इच्छायें हो पूरी ,

नवदम्पति के बीच में कभी ना आये दूरी ,
जीवन भर बढ़ता रहे इन दोनों में प्यार ,

दें यह आशीर्वाद सरस्वती और राजेश सोनार ,
आशीर्वाद ईश्वर के आशीष से आज घड़ी यह आई है ,

िशल्पराज और नेहा खातिर गूंज रही शहनाई है ,
गणपति के आशीष से हुई नई शुरूआत ,

खुिशयों से भरपूर हों अब सारे दिन रात ,
िशल्पराज की बन गई अब नेहा हमराह ,

मिले सदा आशीष बड़ों का है दिल मे यह चाह,
जीवन भर मुस्कान का पावें दोनो साथ ,

जीवन के हर दौर में कभी ना छूूटे हाथ ,
खुिशयां जीवन भर मिलें और प्यार भरपूर , मिलकर

दोनों ही करें सब बाधायें दूर , चाहत ना कम हो कभी ,

इच्छायें हो पूरी , नवदम्पति के बीच में कभी ना आये दूरी ,
जीवन भर बढ़ता रहे इन दोनों में प्यार ,

दें यह आशीर्वाद सरस्वती और राजेश सोनार ।
गम और खुशी
खुिशयां या गम मिलती है अपने जीवन में सबको ज्यादा या कम ।

कोई खुशी को रखता संजो कर कोई जरा पाके इतराता है

खुिशयां सदा ही रहती नहीं है जाने वो पर भूल जाता है ।

रखा संजोकर जिसने खुशी को हों उसके नैना खुिशयों से नम ...
आये जो गम तो रोती हैं ऑखें

दिल में निराशा सी जगने लगे कितने दिनो तक छाया हुआ

अब गम का अंधेरा ये कैसे टले

गम से है मिलती जीवन की िशक्षा गम से ही टूटा करें सब भरम ...
गम है अंधेरा खुिशयां उजाला एक के बाद एक आया करें

गम के बिना हैं खुिशयां अधूरी पाठ यही सब पढ़ाया करें

गम पाकर हंसता जो भी रहेगा उसका ही जीवन बनता कुदन ...

विश्वास
संचित पूंजी जो रखा हमने अपने पास ।उससे भी है कीमती अपनो का विश्वास । पूंजी लुट भी जाये तो दुख थोड़ा सा होये ।पर टूटे विश्वास तो दिल फिर हर पल रोये ।
पत्थर पर विश्वास किया तो वह बनता भगवान है ।खुदा प्रभु भगवान वाहेगुरू सब विश्वास के नाम हैं ।बिन विश्वास के सूरज के यह जीवन रहे अंधेरे में ।और बिना विश्वास के उसका होता सत्यानाश है ।
राम नाम की महिमा पर जब तुलसी ने विश्वास किया ।रामचरितमानस रच मर्यादा को नव आकाश दिया ।अगर करो विश्वास तो दिखता कण कण में भगवान है ।और यही विश्वास बनाता पत्थर को हनुमान है ।
सारे जहां की दौलत चाहे रख लो अपने पास तुम ।चाहे दुनिया में कहलाते हो कितने भी खास तुम ।मगर अकेले में खुद को कंगाल समझते ही होगे ।अगर खो दिया तुमने अपने लोगों का विश्वास है ं।
है यह विनती आपसे खोना ना विश्वास ।पूंजी जीवन भर यही रखना अपने पास ।इस पूंजी से ही मिला करता सच्चा स्नेह ।आनंदित मन हो सदा औश्र स्वस्थ हो देह ।पढ़ाई
करें पढ़ाईचलो हम करें पढ़ाई ।हिन्दू रामचरितमानस पढ़ते हैं मुस्लिम पढं़े कुरान गुरूग्रंथ का पाठ करे सिखबाइबिल पढ़े ईसाई ,करें पढ़ाईचलो हम करें पढ़ाई ।पुस्तक से संपर्क रखेंगे शब्दज्ञान हम पायेंगे ज्ञानकोष पाने पर ही तो हम विद्वान कहायेंगे ।रहें निरक्षर तो फिर जग में होगी सदा हंसाई ,करें पढ़ाई चलो हम करें पढ़ाई।आदत अगर रखें पढ़ने की नित्य नया कुछ पायेंगेअपने जीवन के रस्ते में उसका लाभ उठायेंगेपुस्तक के सत्संग से पायेंगे हम सदा बड़ाई करे पढ़ाई चलो हम करें पढ़ाई।

राजेश कुमार सोनार


कोषाध्यक्ष , अक्षर साहित्य परिषद् ,

वरिष्ठ सहायक, भारतीय स्टेेट बैंक,

चाम्पा, जिला जांजगीर-चाम्पा (छ.ग.) ( 07819) 245759(निवास)

अपंगता जीवन में बाधक नहीं होता : इंद्राणी केशरवानी





अपंगता जीवन में बाधक नहीं होता : इंद्राणी केशरवानी


मुंगेली के प्रतििष्ठत मालगुजार भवानी साव दानी के परिवार का वहां दबदबा आज भी बरकरार है। जब वे मालगुजार थे तब की बातें हम क्या जाने, लेकिन आज हमें जो किंवदंति के रूप में सुनने को मिलती है उसे ही जानते हैं। भवानी के तीन पुत्र क्रमश: रामलाल साव, िशवदयाल साव और अिम्बका साव हुए। रामलाल साव का कोई बच्चा नहीं था इसलिए वे अपनी सम्पत्ति को `रामलाल-भवानी साव धर्मादा ट्रस्ट` बनाकर सामाजिक सेवा में समर्पित कर दिया। लेकिन िशवदयाल साव के तीन पुत्र क्रमश: ओंकारप्रसाद, श्रीराम और अनुजराम हुए जबकि अिम्बका साव के दो पुत्र निरंजन प्रसाद और निर्मल प्रसाद हुए। सभी राजसी ठाठ से जीवन व्यतीत कर रहे थे। सबके अपने शौक थे। कोई संगीत और नृत्य को अपने जीवन का अंग बनाया तो कोई राजा-महाराजा के साथ दोस्ती करके गौरवािन्वत होता रहा, तो कोई मालगुजारी का काम देखने में मगन था। 1947 में देश आजाद हुआ और 1952 में देश और प्रदेश में प्रथम आम चुनाव हुए। राजा, जमींदार और मालगुजारों ने रामराज्य परिषद बनाकर चुनाव लड़े और उन्हें सफलता भी मिली। श्री अिम्बका साव भी रामराज्य परिषद से चुनाव लड़कर विधायक बने। तब छत्तीसगढ़ मध्य भारत के अंतर्गत आता था और नागपुर उसकी राजधानी थी। अिम्बका साव का राजधानी नागपुर अक्सर जाना होता था। संयोग से वहां उनकी सुपुत्री निराशा का परिवार था। उन्होंने अपने दोनों पुत्रों निरंजन और निर्मल को वहां पढ़ने के लिए भेजा। इस प्रकार उनका आधा परिवार नागपुर में रहने लगा। निरंजन प्रसाद तो वहां के मारिश कालेज से लॉ की डिग्री प्राप्त किया। अध्ययन के दौरान एक एक्सीडेंट में उनका एक पैर काटना पड़ा। लेकिन उनका आत्म विश्वास उन्हें राजनीति के िशखर तक ले गया। वे दो बार विधायक, एक बार सांसद, नगरपालिका अध्यक्ष, जिला सहकारी बैंक के संचालक और पार्टी के जिलाध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों में रहे। वे छत्तीसगढ़ में `अलख निरंजन` के रूप में जन सेवा को अंजाम दिये। राजनीति की िशक्षा उन्हें अपने पिता के चुनाव संचालन से मिली थी। लेकिन निर्मलप्रसाद की सैद्धांतिक पढ़ाई में कम रूचि थी और वे तकनीकी बारीकियों को बड़ी गंभीरता से समझने का प्रयास करते थे। पिता और भाई की राजनीति में रहने से चौपट हो रहे अपने पैत्रिक व्यवसाय को सम्हालने के लिए पढ़ाई को अधूरा छोड़कर मुंगेली लौट आये। यहां उन्होंने एक मोटर गेरेज खोला लेकिन ज्यादा दिन इसमें उनका मन नहीं लगा और इलेिक्ट्रशयन का काम सम्हालने लगे। इसमें भी उनका मन नहीं लगा और वे मजगांव की खेती देखने लगे। उनका विवाह भी जल्द कर दिया गया। शहर की भागम भाग से दूर वे गांव की प्राकृतिक सौंदर्य में जैसे रम से गये थे। एक एक करके विमल, कला, प्रदीप, कल्याणी, इंद्राणी और राजेश का आगमन सहज ही हुआ। इंद्राणी जब छ: माह की थी तब इस क्षेत्र में हैजा का प्रकोप हुआ। मजगांव भी उसके प्रकोप से नहीं बच सका। सम्हलते सम्हलते भी इंद्राणी को उल्टी-दस्त होने लगा। छोटी सी बच्ची और उपर से उल्टी-दस्त, गांव में इलाज तो संभव नहीं था, बाबु जी की दवा भी असर नहीं किया। मां तो एकदम परेशान हो गयी। उस समय 10-12 कि. मी. दूर मुगेली तक आने जाने का कोई साधन जल्दी नहीं मिलता था। एक बैल गाड़ी में मां इंद्राणी को लेकर मुुंगेली आ गयी। तत्काल डॉक्टर को दिखाया गया। परीक्षण के बाद डॉक्टर ने इंजेक्शन लगा दिया और खाने को दवाई भी दे दिया। हप्ते दिन बाद इंद्राणी ठीक हो गयी। जब वह चलने योग्य हुई तब उसे चलने में कठिनाई होने लगी। उम्र बढ़ने के साथ जब वह नहीं चल सकी तो उसकी पुन: डॉक्टरी परीक्षण हुआ। दिल्ली, बंबई और नागपुर सभी जगह परीक्षण के बाद पता चला कि बचपन में उल्टी दस्त रोकने के लिए जो इंजेक्शन लगाई गई थी वह एक्सपाइरी डेट की थी जिसके कारण उन्हें पोलियो हो गया। लड़की और उपर से चलने के अयोग्यण्ण्ण् मालगुजार परिवार को बड़ा अघात लगा। पर्याप्त इलाज कराया गया, उसके पैर का कई बार आपरेशन किया गया लेकिन सब बेकार। उम्र बढ़ने लगा और परेशानियां बढ़ने लगी। डॉक्टरों का आश्वासन अब मन को ज्यादा दिन धीरज नहीं दे सका और इसे ईश्वर की मजीZ समझकर सभी आत्मसात करने लगे। उनसे सभी स्नेह करने लगे, उन्हें कभी किसी बात की कमी न हो, इसका सभी ख्याल रखते थे। एक वाकिये का जिक्र करते हुए इंद्राणी बताने लगी कि एक बार दूसरे बच्चों को अच्छी सेंडिल पहनते देखकर उन्हें भी लगने लगा कि वह भी ऐसे ही सेंडिल पहनेगी। फिर एक बार दूसरे की साइकिल में चलाने के लिए बैठने पर गिर गयी और रोने लगी तब उनके बाबु जी उनके लिए तत्काल एक नई साइकिल खरीदी। बचपन से ही उनके मन में सभी काम करने की ललक थी, इसके लिए उनमें आत्म विश्वास की कमी नहीं थी। धीरे धीरे इंद्राणी स्कूल जाने लगी। पढ़ने में वह होिशयार थी, क्लास में हमेशा अव्वल आती थी। जब वह स्कूल की पढ़ाई पूरी कर ली और कालेज की पढ़ाई के लिए बिलासपुर में दाखिला ली तो शुरू शुरू में उन्हेंं घर की बहुत याद आती थी। कमरे में बैठकर खूब रोती थी। धीरे धीरे सब ठीक हो गया और वह ग्रेजुएट हो गयी। फिर अपने कल्याणी दीदी के पास रायगढ़ एम.एस-सी. करने आ गयी। यहां से एम.एस-सी करके रविशंकर विश्व विद्यालय रायपुर से एम. फिल की परीक्षा उत्तीर्ण की। इस प्रकार जीवन के अनमोल क्षण उन्होंने पढ़ाई करते गुजार दी। अपने भाई के साथ रहते हुए उन्होंने समाजशास्त्र में एम. ए. की। अ. जा. हायर सेकंडरी स्कूल नारायणपुर, जशपुर में उनकी व्याख्याता के पद पर नियुक्ति हो गयी। वह अकेली जाने को तैयारी थी लेकिन परिवार के लोग दूर वनांचल में उन्हें अकेली नौकरी करने के लिए भेजने के पक्ष में नहीं थे। बाद में उनका स्थानान्तरण कोरबा के पास कराने के लिए प्रयास किया गया फलस्वरूप उनका स्थानान्तरण रामपुर हो गया। लेकिन यहां भी वही समस्या थी। कुल मिलाकर उन्हें इस नौकरी से वंचित होना पड़ा। उन्हें थोड़ी निराशा अवश्य हुई मगर उन्होंने हार नहीं मानी। फिर वह क्षण भी आया जब उन्हें शासकीय कन्या हायर सेकंडरी स्कूल मुंगेली में उच्च श्रेणी िशक्षिका के रूप में पदस्थापना मिली। वह तत्काल वहां कार्यभार ग्रहण की और विवाहोपरांत कोरबा आ गयी। ईश्वर की लीला देखिये कि उनकी शादी में भी भरी बरसात रूकावट बनी और बारात दूसरे दिन पहुंची। बहरहाल, विवाहोपरांत उनका दाम्पत्य जीवन कोरबा में अच्छे से चलने लगा। उन्होंने कम्प्यूटर की ट्रेनिंग ली। इस प्रकार अच्छी से अच्छी िशक्षा प्राप्त कर उन्होंने अपना दाम्पत्य जीवन की शुरूवात की। अपने जीजा के संपर्क में रहकर उन्होंने लेखन की शुरूवात की। उनके सामाजिक, पारिवारिक लेख आये दिन पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगे। एक नन्ही सी गुिड़या के आगमन से उसकी जिंदगी जैसे बदल सी गयी। उनका नाम समृिद्ध रखा गया। नाम के अनुरूप समृिद्ध के आगमन से उनके छोटे से परिवार में सुख और समृिद्ध आ गयी। फिर वह सामाजिक संस्थाओं से जुड़ने लगी और सर्वप्रथम उन्हें छत्तीसगढ़ केशरवानी वैश्य सभा में महिला प्रतिनिधि के रूप में प्रदेश उपाध्यक्ष मनोनित किया गया। उन्होंने कोरबा नगर केशरवानी वैश्य सभा और महिला सभा के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निबाही और तब से वह नगर केशरवानी वैश्य महिला सभा की अध्यक्ष हैं। वह प्रदेश केशरवानी वैश्य महिला सभा की महामंत्री की जिम्मेदारी सम्हालने के बाद वर्तमान में समाज की राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष हैं। यही नहीं बल्कि वह नारी संचेतना समिति कोरबा की सचिव पद पर कार्य करते हुए आज पुलिस विभाग के साथ मिलकर बालिकाओं को आत्म सुरक्षा के लिए माशZल आट्Zस का प्रिशक्षण का आयोजन करवाकर प्रशंसा का पात्र बन चुकी हैं। इसी प्रकार स्वास्थ्य िशविर और छात्र-अभिभावकों में मोबाइल तथा गािड़यों के दुरूपयोग आदि पर जन जागृति अभियान चलाकर लोगों से प्रशस्ति प्राप्त कर चुकी है। आज वह लायंस क्लब कोरबा एवरेस्ट की सचिव रहकर सेवाकार्य कर रही हैं। उनका मानना है कि शारीरिक अपंगता जीवन की सफलता में कभी बाधक नहीं होता बशतेZ मन में विश्वास और कार्य करने की लगन हो। जीवन के इस पड़ाव में मुझे मेरे माता-पिता, भाई-भाभी और दीदी-जीजा के साथ मेरे पति का साथ मिला। मैं सोचती हूं कि जीवन तो ईश्वर की देन है, माता-पिता जननी हैं लेकिन उसे सफलता पूर्वक जीने के लिए आत्म विश्वास, ध्ौर्य और लगन बहुत जरूरी है। यही कारण है कि आज मैं पैदल भी चलती हूं, हल्की गाड़ी (स्कूटी) भी चलाती हूं और ईश्वर ने साथ दिया तो कार भी चलाऊंगी। उनकी इस कामना के लिए हमारी हािर्दक शुभकामनाएं, ईश्वर उनकी कामना पूरी करे।
जीवन परिचय :-
नाम : श्रीमती इन्द्राणी केशरवानी
1. माता-पिता : श्रीमती शुकवारा-निर्मल केशरवानी
2. पति : अश्वनी कुमार केशरवानी
3. िशक्षा : एम. एस-सी. (प्राणीशास्त्र), एम. फिल. एम. ए. (समाजशास्त्र), बी. एड.
4. जन्म : 02. 10. 1965 (दो अक्टूबर उन्नीस सौ पैंसठ), मुंगेली के प्रतििष्ठत मालगुजार स्वण् अिम्बका साव की पौत्री एवं स्वण् निरंजन केशरवानी की भतीजी)
5. पद : 0 प्रभारी प्राचार्य, शासकीय आदिमजाति हाई स्कूल गोपालपुर, कोरबा (छत्तीसगढ़) 0 सचिव, नारी संचेतना समिति कोरबा 0 सचिव, लायंस क्लब कोरबा एवरेस्ट 0 राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष, अखिल भारतीय केशरवानी वैश्य महिला महासभा 0 अध्यक्ष, केशरवानी वैश्य महिला सभा कोरबा
6. पूर्व धारित पद : 0 उपाध्यक्ष, लायंस क्लब कोरबा एवरेस्ट 0 उपाध्यक्ष, छत्तीसगढ़ प्रदेश केशरवानी वैश्य सभा 0 महामंत्री, छत्तीसगढ़ प्रदेश केशरवानी वैश्य महिला सभा
7. अभिरूचि : पत्र-पत्रिकाओं में समाजिक एवं पारिवारिक लेख, कहानी एवं कविता प्रकािशत।
8. आयोजन : 0 युवतियों में आत्म रक्षा के लिए ``पुलिस-छात्र संचेतना कार्यक्रम`` के अंतर्गत का लड़कियों को मार्सल आट्Zस का प्रिशक्षण का आयोजन। 0 छात्र-छात्राओं के द्वारा मोबाइल एवं गाड़ी का दुरूपयोग न करने के लिए जागृति कार्यक्रम।
9. पुरस्कार/सम्मान विभिन्न सामाजिक एवं स्वैच्छिक संस्थाओं से सम्मानित और पुरस्कृत।
10. संदेश : शारीरिक अपंगता जीवन में किसी प्रकार बाधक नहीं होता बशतेZ आत्म विश्वास हो। 11. संपर्क : पायल इंटरप्राइजेज, विकास काम्पलेक्स के पास, पावर हाउस रोड कोरबा (छ.्ग.) फोन नं. 07759-222686, 223686
रचना, लेखन, फोटो एवं प्रस्तुति,
प्रो. अिश्वनी केशरवानी
राघव, डागा कालोनीचांपा-495671 (छत्तीसगढ़)